दिल जानता था ये बात,
के न दोगी कभी तुम मेरा साथ...
फिर भी मैंने तुमसे ही प्यार किया,
दिल के बदले दर्द-ए-दिल मैंने तुमसे ही लिया...
प्यार क्या होता है, ये मैंने न था कभी जाना,
और तुमसे मिलकर ही मैंने था शायद इसे पहचाना.
पर जब खाया मैंने तुमसे धोखा,
तो लगा के शायद अब भी हूँ मैं सच्चे प्यार से अनजाना...
गलती मेरी ही थी शायद,
जो मैंने इसे प्यार समझा...
रहना था दूर जिससे मुझे,
उसे ही अपना दिलबर, अपना दिलदार समझा...
तुम्हे अपना समझ के मैंने,
"मैं क्या हूँ ?" ये भी तुमको बताया...
इशारों - इशारों में ही सही,
अपना हाल-ए-दिल भी मैंने तुमको समझाया...
पर मुझे क्या पता था, के तू अपने जैसा सबको समझेगी,
मेरे प्यार को महज एक दिल्लगी समझेगी...
मेरी हर कहानी में तुम थी,
मेरी हर कविता में भी तुम थी...
आँखों से जो कभी बहे, उस पानी में तुम थी...
मेरे दिल ने जो चाही थी लिखनी,
हर उस कहानी में भी तुम थी...
पर अब तू मेरे लिए, सिर्फ एक कहानी हो गई है...
तेरी हर एक अदा मेरे लिए, अब पुरानी हो गई है...
क्योंकि जो कुछ लिखा था मैंने तेरे लिए,
उसकी आज ये दुनिया दीवानी हो गई है...
मैं भूल चूका हूँ तुझे,
और तू अब दुनिया की भीड़ में खड़ी अनजानी हो गई है...
मुझे पता है के ये बातें सुनकर भी,
मेरी किसी बददुआ से भी तुझको,
कभी नर्क नहीं मिलेगा...
क्योंकि मैं चाहता हूँ के तुझको
दुनिया भर की हर ख़ुशी मिले...
और उस हर एक ख़ुशी में तुझको,
हर बार मेरी ही कमी मिले...
- महेश बारमाटे "माही"
२२ अप्रेल २००८
जरा यहाँ भी गौर फरमाइए...
क्योंकि मैं चाहता हूँ के तुझको
जवाब देंहटाएंदुनिया भर की हर ख़ुशी मिले...
और उस हर एक ख़ुशी में तुझको,
हर बार मेरी ही कमी मिले...
man ke bhavon ki sundar prastuti.badhai.
@शिखा कौशिक dhanyawad Shikha ji...
जवाब देंहटाएं@अरूण साथी dhanyawad Arun ji
जवाब देंहटाएंएक और सुन्दर कविता आपकी कलम से !
जवाब देंहटाएंकोमल भावों से सजी ..
जवाब देंहटाएं..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
@संजय भास्कर
जवाब देंहटाएंDhanyawad Sanjay ji