शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

सबक... प्यार का..

सबक... प्यार का..


किसी को सुकून मिलता है,
किसी का गम उजागर होता है...
ज़िन्दगी के इन तन्हा रास्तों में जब कोई पराया,
प्यार का सागर बन के उतरता है...


एक पल में ही वो पराया, अपनों से भी प्यारा हो जाता है...
क्या कोई बताएगा मुझे, के इस सागर में इतना प्यार कहाँ से आता है ?


इस प्यार के सागर में हम, दुनिया भूल जाते हैं...
जीना क्या, हम तो मरना भी भूल जाते हैं...
अपने परायों को तो छोड़ो, जिसने हमें किया पैदा,
हम तो उन्हें तक याद करना भूल जाते हैं...


चार दिनों दा प्यार हमारा, बीस सालों के प्यार पर भारी पड़ जाता है...
वो इकलौता मेरा सनम, मेरे लिए तो दुनिया सारी बन जाता है...


कुछ ऐसा ही हुआ साथ मेरे भी, जब हुआ मुझे भी किसी से प्यार...
प्यार में उसके हो गई मैं बावरी, और छोड़ा घर - बार...


मेरा सनम, मेरा माही, मेरी सारी ज़िन्दगी का हमराही...
आज भूल गई प्यार में उसके, के क्या था गलत और क्या है सही...


साथ मिला जो उसका, तो मैं भी बागी हो गई...
भाग कर संग उसके, आज दुनिया कि नज़रों में मैं भी दागी हो गई...


कर दिया इक बार जो खुद को उसके हवाले,
फिर न सम्भला दिल, लाख सम्भाले...


हो गई मैं उसके प्यार की दासी,
पर आज क्यों छाई, ज़िन्दगी में मेरे ये उदासी...?


अपनों ने नाता तोड़ा, गैरों ने भी पूछा नहीं...
आज वो भी छोड़ के मुझे चला गया, प्यार में जिसके मुझे कुछ सूझा नहीं...


जोगन हो के तेरे प्यार में, आज दर - दर भटक हूँ रही...
हे भगवान ! क्या हो गया था मुझको, क्यों सच मुझको दिखा ही नहीं ?


आज मेरे प्यार कि निशानी, कोख में है मेरे,
पर अपना नाम देने इसे, आज कोई तैयार नहीं...
क्यों किया उसने मेरे साथ ऐसा,
जब था उसको कभी मुझसे प्यार नहीं ?


मेरी ज़िन्दगी तबाह करके,
आज खुश है वो एक और नया विवाह करके...
कर रहा है उसके साथ भी शायद वही,
जो छोड़ दिया उसने मुझे ना जाने कितनी मर्तबा करके...


दिल कोस रहा है उसको, आज लाखों बार...
फिर भी इस दिल के किसी कोने में,
आज भी है उसके लिए प्यार...


क्योंकि मैंने तो दिल से चाहा था उसको,
सारी दुनिया में उसके सिवा, और कोई ना भाया था मुझको...


मैं तो जी गई तेरे प्यार में,
अब तो जी रही हूँ बस इस इंतज़ार में...


के मरने से पहले तुझे भी तड़पता देखना हूँ चाहती...
तू चाहे ना चाहे, पर तुझ संग ही मैं मरना हूँ चाहती...


मेरी सज़ा का तू हक़दार है "माही"...
के तू ही मेरा पहला और आखिरी प्यार है "माही"...


सज़ा भी ऐसी के तुझे हर पल याद रहे...
के हर जन्म में अब, बस तेरा - मेरा साथ रहे...


आज तुझे मैं अपने प्यार का एहसास दिलाना चाहती हूँ...
जो कभी मुझे थी, मैं तुझे भी वो प्यास दिलाना चाहती हूँ...
किया है सच्चा प्यार मैंने तुझसे,
ये सारी दुनिया को विश्वास दिलाना चाहती हूँ...


और चाहती हूँ के दुनिया भी जाने,
के प्यार में धोखा क्या होता है ?
इस प्यार के सागर की गहराई में इन्साँ,
कभी हँसता ही नहीं, बल्कि हमेशा ही रोता है...


न करना ऐसा प्यार ऐ नौजवानों !
गर अपने सपनों को अंत तक साकार करने की ताकत न हो तुम में...
खुदा करे कि मुझ जैसी गलती,
अब की बार करने की हिमाकत न हो तुम में...


टूट जाते हैं घरौंदे, इक छोटी सी गलती से...
बिखर जाता है हर एक तिनका, बस एक नासमझी से...


फिर नहीं मिलता कोई भी आशियाना, सर छुपाने के लिए...
गर प्यार करना है तो बस इतना जान लो,
के प्यार में सीखो सिर्फ खोना,
ये किया जाता नहीं, कभी कुछ पाने के लिए...


                       - Mahesh Barmate (माही)
                          21st Apr. 2010

बुधवार, 6 अक्तूबर 2010

क्यों ?

क्यों ?

किसने था कभी चाहा मुझको,
अतीत में मेरे कोई नहीं जिसने कभी था सराहा मुझको...
डूब रहा था चुपचाप ही अपनी ही तन्हाइयों में,
आखिर क्यों आज तुमने बचाया मुझको ?

                     मेरी ज़िन्दगी का नासूर,
                     जब खुशियाँ देने लगा था मुझको,
                     खुश था शायद बहुत मैं अपने हाल से,
                     फिर क्यों दर्द-ए-दिल तमने दिया मुझको ?

मैं तो भूल चूका था चाहत का हर रास्ता शायद,
फिर तेरा प्यार क्यों इसी रास्ते पर फिर ले आया मुझको?

                    गर लुट चूका था हर राही तेरी मन्जिल का,
                     तो फिर क्यों तुमने अपना माही बनाया मुझको ?

                                                                                     महेश बारमाटेमाही 
                                                                                         5th Oct 2010