सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

ऐतबार


आज अपनी ही परछाइयों से डरने लगा हूँ मैं...
के जब से तुझसे प्यार करने लगा हूँ मैं...

अन्जान है तू, आज भी मेरे हाल - ए - दिल से,
इस बात का गम नहीं मुझे,
बस अब तो तेरे एहसास से भी डरने लगा हूँ मैं...

घूम रहा था मैं इक दफ़ा,
आवारा परवाने की तरह...
के जब से देखा है तेरी शमा - ए - मुहब्बत,
बस एक ठंडी आग में जलने लगा हूँ मैं...

तुझे पा के भी हम, ऐ सनम !
तेरी दगा - ए - मुहब्बत से कभी तेरे हो न सके हम...
पर फिर भी आज तेरा इन्तज़ार करने लगा हूँ मैं...

मेरा मुकाम कहाँ तय था,
एक तेरा दिल ही तो मेरा आश्रय था...
टूट चूका हूँ इतना मैं, ओ मेरे माही !
के तेरी बेवफाई से भी आज वफ़ा करने लगा हूँ मैं...

ठुकरा दिया जिसने मुझे और मेरी मुहब्बत को,
आज उससे और भी प्यार करने लगा हूँ मैं...
के कभी तो तरस आएगा खुदा को मुझ गरीब पे, "माही"
किस्मत पे अपनी इतना तो ऐतबार करने लगा हूँ मैं....

- महेश बारमाटे
6th Nov. 2010

बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

कहीं... दर्द तो नहीं हुआ ?


दिल तोड़ कर मेरा, कहते हो -
 कहीं... दर्द तो नहीं हुआ ?

मेरे ज़ख्मों पर छिड़क कर नमक, कहते हो - 
 कहीं... दर्द तो नहीं हुआ ?

इश्क को मेरे मार कर ठोकर, कहते हो - 
 कहीं... दर्द तो नहीं हुआ ?

जिम्मेदार मेरी इस हालत का बनकर, कहते हो - 
 कहीं... दर्द तो नहीं हुआ ?

मेरे दिल के टुकड़ों पर रख कर कदम, कहते हो - 
 कहीं... दर्द तो नहीं हुआ ?
                                                      अब तुम्हे क्या कहूँ मैं,
                                                      के इस दर्द में भी एक अलग मज़ा है...
                                                      मिले ख़ुशी तुम्हे और गम मुझे,
                                                      शायद मेरे खुदा की यही रज़ा है...
फिर भी अगर, मिले कभी खुदा तो,
पूछूँगा मैं उनसे, 
के 
देखकर मेरी ऐसी हालत, 
 कहीं...  दर्द  तो  नहीं  हुआ ?

सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

कवि हो गया हूँ मैं...


जो कभी न सोचा था, वही हो गया हूँ मैं...
लेखक बनने की तमन्ना थी, पर कवि हो गया हूँ मैं...

कुछ सोचते - सोचते, कहीं खो गया हूँ मैं...
चाँद छूने की तमन्ना थी, पर रवि हो गया हूँ मैं...

ज़िन्दगी में कुछ पाने की तमन्ना सबकी होती है,
और संसार में हर किसी की किस्मत कभी जागती, कभी सोती है...

मैंने भी अपनी सोती किस्मत को जगाना चाहा,
आसमाँ से एक तारा तोड़कर, अपना घर भी सजाना चाहा...

इसीलिए लिखने की मैंने भी शुरुआत कर ली...
मंजिल को पाने के लिए, अपनी किस्मत से मैंने भी मुलाकात कर ली...

पर जब किस्मत ने न मानी मेरी बात,
तब मैंने की उससे, एक और समझौते वाली बात,
के मैं करूँगा मेहनत, अब चाहे दिन हो या रात,
बन के दिखाऊंगा, कवि और लेखक एक साथ...

इसलिए आज किसी की नज़र में हूँ मैं लेखक,
तो किसी के लिए कवि हो गया हूँ मैं...
                        अपने चाहने वालों के मन में,
                         सुनहरी छवि हो गया हूँ मैं...

बनना चाहता था मैं लेखक,
                      और साथ में कवि हो गया हूँ मैं...
चाँद छूने की तमन्ना थी, पर रवि हो गया हूँ मैं...
           जो कभी न सोचा था, वही हो गया हूँ मैं...

कवि हो गया हूँ मैं... 
              कवि हो गया हूँ मैं...


By
Mahesh Barmate (माही)
21st Aug. 2007


बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

इल्तिज़ा... A Loving Request From Someone's Heart

इल्तिज़ा...
    A Loving Request From Someone's Heart...

फर्क पड़ता नहीं मुझको,
                 के आज जनाज़ा उसका उठ रहा है...
बात तो बस इतनी है, 
             के जो कल तक बस यूँ ही मुझसे रूठा था,
आज वो जिंदगी भर के लिए मुझसे रूठ रहा है...

खता बस हुई थी इतनी मुझसे,
         के मजबूरियों में छोड़ा था मैंने उसको,
पर आज देखो,
          हाथों से उसके, 
                           दामन मेरा छूट रहा है...

बस एक बार आजा, ओ साजन मेरे !
      के माँग लूँ माफ़ी मैं अपनी इस खता-ए-मुहब्बत की,
के सैलाब - ए - मुहब्बत नज़रों से मेरी, अब छूट रहा है...

और दर्द दे रहा है ये एहसास-ए-गम मुझको,
के बन के तूफाँ, ये कहर-ए-कायनात मुझ पे टूट रहा है...

लगा के गले, ले चल मुझको भी, संग अपने ऐ माही मेरे !
के खता है ये नज़र-ए-खुदा में, 
                  के यूँ ही जाने से तेरे, दिल मेरा टूट रहा है... 


-- महेश बारमाटे (माही)
2nd Feb. 2011