आज बड़ी कश्मकश में हूँ मैं, क्या करूं कुछ समझ में नहीं है आता ?
अपनी ख़ुशी का इजहार करूं या तुझसे रूठ जाऊं, कोई क्यों नहीं है मुझको ये समझाता ?
आज जिसकी मुझे उम्मीद न थी, तुमने है कह दी मुझसे वह बात
शायद जिसे सुनना चाहता था कभी दिल मेरा, पर न जाने क्यों नहीं दे रहा ये आज मेरा साथ ?
फिर भी ख़ुशी बहुत हुई,जो तेरे मुख पर आ ही गयी तेरे दिल की बात,
अब सोच रहा हूँ कैसे कटेगी,आज की ये ये तन्हा अँधेरी रात?
तेरी उस बात ने मुझको और भी तन्हा है कर दिया,
पहले तो मैं सिर्फ तन्हा था, अब तनहाइयों ने भी मुझको सौतेला कर दिया.
फिर भी अच्छा ही हुआ
जो तेरे दिल की बात जुबाँ पर आ ही गयी,
जिनके मन में तेरे लिए ग़लतफ़हमी थी,
उनके चेहरों पर अब कुछ उदासी है छा गयी.
तूने जो कुछ कहा मैंने उसका बुरा न माना.
क्योंकि मैंने तुझको कभी अपना दिलबर न था माना.
मेरे दिल में, जिस जगह पर लोगो ने तुझे देखना था चाहा, वो जगह आज भी खाली है.
और ये दिल तेरा नहीं बल्कि, इस दिल के बाग़ का कोई और ही माली है.
गर और कोई कसर बाकी हो, तो इस दिल पर तू और कर वार,
जो किसी के हुस्न की आग में पिघला नहीं, वो फौलाद क्या टूटेगा, अब चाहे ईट हो या तलवार.
पर ऐ बेखबर! कहीं ऐसा न हो, के मुझ पर करते - करते वार,
कहीं हो न जाए तुझको मुझसे प्यार.
नफरत भरी तलवार.
महेश बारमाटे
13 Apr 2008
2:15 am
Nice poem .
जवाब देंहटाएंअब एक सवाल हमारा है। जिसे हल करना बिल्कुल भी अनिवार्य नहीं है।
क्या आप जानते हैं कि कोई आया या नहीं आया लेकिन ब्लॉगर्स मीट वीकली का आयोजन बेहद सफल रहा ?