बुधवार, 30 अप्रैल 2014

वो मुझसे प्यार करने लगे हैं...

वो मेरा इंतज़ार करने लगे हैं
कुछ – कुछ मुझसे इक़रार करने लगे हैं
यूं तो कभी न हुई कोई मुलाक़ात हमारी
पर अब वो ख्वाबों में मेरा दीदार करने लगे हैं।

बस जानते हैं
एक – दूजे को हम,
पर पूरी तरह से नहीं।
फिर भी मेरी अनजान शख्सियत पे
वो अब एतबार करने लगे हैं

मेरी पसंद – न – पसंद तो
रब जानता है मेरा।
पर अपनी पसंद का वो अब
सरे – आम इज़हार करने लगे हैं।

हर पल बदलती अदा ये उनकी
मेरी सोच मे दस्तक देती है
के अब क्या कहूँ इसे मैं माही!
क्या वो मुझसे प्यार...
करने लगे हैं ???

- महेश बारमाटे "माही"

गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

मेरे माही!


इश्क़ करता है तू
मुझसे मेरे माही!
पर जाने डरता है तू
किस से मेरे माही!

ये चाहत भी अजीब होती है।
हर पल मैं – तेरे और तू – मेरे करीब होती है।
फिर भी जुदा – जुदा सा फिरता है तू
मुझसे मेरे माही!

इश्क़ है तो इज़हार कर
आ इक पल के लिए तो मुझसे प्यार कर।
के जी ले आज उस पल में ज़िंदगी सारी
बिन मेरे जी रहा है तू जिसे मेरे माही!

हम मिले थे
कभी न बिछड़ने के लिए मेरे माही!
तेरी – मेरी भावना के संग
बहने के लिए मेरे माही!
भावनाओं का बहता झरना
किस मोड़ पे ले आया है हमें
के अब ज़िन्दगी तरस रही है,
मरने के लिए मेरे माही!

आ एक बार फिर
एक हो जाते हैं।
इक दूजे की बाहों में
खो जाते हैं।
इस गुजरते लम्हे की कसम है तुझे
के अब के ऐसे मिलें
के फिर न बिछड़ने के लिए मेरे माही!

मेरे माही!
आज भी तू मेरी तलाश में है
दूर ही सही, तू फिर भी मेरे पास में है।
तो फिर क्यूँ जुदा मुझसे होने की ज़िद है तेरी,
कोई खता नहीं, फिर भी सजा देने की ज़िद है तेरी,
के आज मेरा नाम,
तेरे रग – रग के एहसास में है।

- महेश बारमाटे "माही"

शुक्रवार, 4 अप्रैल 2014

मेरा कल...

ऐसा लगता है कि जैसे
कल की ही बात हो

कल ही हम मिले
और कल ही बिछड़ गए

कल ही दिल मिले
कल ही प्यार हुआ

कल ही कल में
इजहार - ओ - इक़रार हुआ

कल ही कल में
कई ज़िंदगियाँ गुजारी
कल ही कल में
खोयी और फिर पायी हमने खुमारी।

कल ही कल में
सातों जनम जी गए
और
कल ही कल में
हम मर गए

कल ही कल
कल ही कल
कल ही कल
जाने क्यूँ नही बीतता आज
मेरा वो... बीता हुआ कल?

आज मेरे
उस कल में
बीत गईं सारी खुशियाँ
और सारे ग़म...
सारे रिश्ते - नाते
वो पल
जिनमे हम थे
हँसते - गाते ।

अब क्या है
पास मेरे
ये सोचता हूँ
तो याद आता है मुझे
मेरा कल।

माही!
तू उस पल से इस पल तक
मेरे कल से, मेरे कल तक
आज भी है साथ मेरे
यादों में, बाहों में
नज़रों में, निगाहों में
शामिल है
मेरे काबिल है
जैसे हो
तू मेरा आज
और
तू ही मेरा कल...


- महेश बारमाटे "माही"