गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

हर रोज का राही...

रोज - रोज,
हजारों लोग,
मिलते हैं मुझको...
कुछ अनजाने से,
कुछ जाने पहचाने से चहरे,
दिखते हैं मुझको...

शनिवार, 10 दिसंबर 2011

तेरा "माही" हूँ मैं... (maahi hoon main)

तेरी रातों का आलम हूँ मैं,
तेरी ज़िन्दगी के सातों जनम हूँ मैं...
मैं तो हूँ तेरी जुल्फों को सहलाती ठंडी हवा,
और तेरे बदन को भिगोता सावन हूँ मैं...

खुशबु तेरे बदन की,
मुझसे ही फ़ैल रही है फिज़ा में...
आजा ओ मेरी दिलरुबा !
छुपा लूं तुझे आगोश में अपनी...
के तेरा दिलबर, तेरा साजन हूँ मैं...

वो तेरे लबों की सुर्ख लाली,
वो तेरी जुल्फों की घटाएं काली - काली,
और वो तेरे मस्त नैनों की अदा मतवाली...
के मैं तो हूँ तेरा वक़्त और तेरा हमदम हूँ मैं...

वो तेरा शबाब-ए-हुस्न,
और तेरा महकता जिस्म,
मैं तो हूँ तेरी रग - रग में शामिल,
के तेरी मांग को सजाता कुमकुम हूँ मैं...

वो तेरा अदा से आँखें झुकाना,
और तेरा लातों को अपनी उँगलियों से खेलना और इतराना...
कभी तेरा शर्म से भी ज्यादा शर्माना...
तो कभी तेरी हया का दामन हूँ मैं...

वो तेरा बात - बात पे मुस्काना,
मुझसे बात करते वक़्त किसी की आहट से तेरा सहम जाना...
मैं तो हूँ तेरे लबों पे रूकती हर बात,
कभी उलफ़त-ए-शमा में मरता परवाना,
तो कभी जन्मों से तेरी उलफ़त में जीता तेरा "माही"...
तेरा जानम हूँ मैं...

- महेश बारमाटे "माही"