सोमवार, 14 मार्च 2011

एक कहानी : Engineering Student की मुंहजुबानी

आज के Engineering Student की है यही कहानी,
Exams के दो दिन पहले वे उठाते हैं Shivani...

Cigarette के धुंए में उड़ाते हैं वो अपनी जवानी,
पर जो अक्सर पढ़ते हैं सिर्फ Shivani, 
Exams में उन्हें आखिर याद आ ही जाती है उनकी नानी...

हर तरह के Latest Fashion को हैं वो अपनाते,
आलसी इतने कि कभी - कभी,
वे अपने ही दोस्त की Assignment Files हैं चुराते...

हर एक Occasion पर Programs हैं वो करते,
और Music के इतने शौक़ीन,
के हमेशा पड़ोशियों की नींद हराम हैं वो करते...

Exams में अक्सर वो एक - दूसरे की शक्ल हैं देखते...
औरों की तो छोड़ो, यहाँ तो Toppers भी नक़ल हैं करते...

पर फिर भी कुछ लोग B. E. Complete कर लेते हैं,
पढ़ कर सिर्फ Shivani...
और Juniors को भी वो देते हैं सलाह,
के Books पढ़ कर क्या करोगे?
पढ़ो सिर्फ Shivani... 

सारे Semester वो करते हैं, अपनी ही मनमानी...
यही है आज के (मध्य प्रदेश के) Engineering Students की कहानी...



नमस्कार दोस्तों !

आज मैं आपके सामने मध्य प्रदेश के Engineering Students की कहानी ले कर आया हूँ...
यहाँ Shivani एक Question Bank है, जिससे म. प्र. का हर Engineering Student भलीभांति वाकिफ़ है...
अगर किसी को ये कविता पसंद न आये तो कृपया मुझे क्षमा करें, 
मैं तो बस अपने Engineering Student होने का कर्त्तव्य निभा रहा हूँ...

वैसे एक बात और कहना चाहूँगा मैं कि जब मैंने ये कविता लिखी थी, 
तब मैं भी एक Engineering Student था, और ये कविता मैंने शिक्षक दिवस के कार्यक्रम हेतु लिखी थी,
पर किन्ही कारणों के फलस्वरुप मैं अपनी ये कृति किसी के सामने पेश ही न कर पाया...
इसी लिए आज मैं इसे अपनी कविताओं के बेशकीमती खजाने से आपके समक्ष ले कर आया हूँ, आशा करता हूँ कि मेरी ये रचना अभी को पसंद आएगी...

और जिसे भी ये कहानी पसंद आये, तो अपने Comments देना न भूलें...
अब कहिये कैसी लगी ये कहानी ?




महेश बारमाटे (माही)
5th Sept. 2007

शुक्रवार, 11 मार्च 2011

डर...

आज डर रहा हूँ मैं,
खुद से ही बात करने के लिए...
जाने क्या हुआ है मुझे,

के डर रहा हूँ ख़ुशी के इन पलों में एक पल भी हँसने के लिए...

जाने मेरी क्या है मजबूरी,
या किस शख्स की है मुझसे दूरी,

के आज डर रहा हूँ खुद का ही इन्तज़ार करने के लिए...

कोई तो बात है,
के दिल रहता दुखी मेरा,
अब दिन और रात है...

जाने क्यूँ रूखे रूखे से आज मेरे ये जज़्बात हैं ?
के डर रहा हूँ अपनी ही महफ़िल में खुद का ही इस्तकबाल करने के लिए...

सुनता हूँ जब उनकी बातें,
सूनी हो जाती हैं मेरी रातें,

के डर रहा हूँ अपनी ही आँखों में इक तारे सा प्रकाश करने के लिए...

मेरी बस एक ख़ुशी, आज मेरे सारे दुखों का कारण है,
दिल हर दम है रो रहा, पर अश्कों में तो बस अब एक सूखा सावन है...

के तरस रहा है "माही",
आज इस सावन में खुद को तर करने के लिए...

माही !
चल अब कुछ करते हैं,
मर - मर के है बहुत जी लिया,
चल आज जीने के लिए मरते हैं...

के भेजा है खुदा ने तुझे भी इस जहाँ में,
कुछ न कुछ कर गुजरने के लिए...

- महेश बारमाटे "माही"
11th March 2011
12.35am 

रविवार, 6 मार्च 2011

कुछ पता ही न चला...

जाने कब तुम इस दिल में आ गए,
कुछ पता ही न चला...
जाने कब तुम मेरी यादों में छा गए,
कुछ पता ही न चला...

जाने कब तुम मेरे अरमानों में समां गए,
कुछ पता ही न चला...
जाने कब तुम मेरे सपनों में छा गए,
कुछ पता ही न चला...

जाने कब मेरी आँखों में तुम्हारी तस्वीर बन गई,
कुछ पता ही न चला...
जाने कब तुम मेरी तकदीर बन गई,
कुछ पता ही न चला...

जाने कब तुम मेरी बातों में आते चले गए,
कुछ पता ही न चला...
जाने कब तुम मेरी रग - रग में समाते चले गए,
कुछ पता ही न चला...

जाने क्यों मैं तुम्हारा इंतजार करने लगा,
कुछ पता ही न चला...
जाने कैसे मैं तुमसे प्यार करने लगा,
कुछ पता ही न चला...

जाने कैसे मेरा तुमसे इकरार हो गया,
कुछ पता ही न चला...
जाने कब मुझे तुमपे ऐतबार हो गया,
कुछ पता ही न चला...

पर जब मैंने ये जाना,
तब तक बहुत देर हो चुकी थी...
मैंने चाह था तुमको सब कुछ बताना,
पर मेरी किस्मत सो चुकी थी...

मैं तो तुम्हारा ही था, 
सदा के लिए,
और चाहा था तुम्हे भी अपना बनाना,
पर तब तक, 
तू मुझसे,
बहुत देर हो चुकी थी...
मैंने चाहा था,
तेरे लिए इक सपना सजाना,
पर तब तक तुम,
किसी और की आँखों का
नूर हो चुकी थी...

वो रात, वो तन्हाई का आलम,
जाने कब फिर मेरी जिंदगी बन गया,
कुछ पता ही न चला...
तू क्या गई,
मेरी सारी दुनिया, मेरा सारा जहाँ
मुझसे जाने कैसे रूठ गया 
कुछ पता ही न चला...

आज तड़प रहा है "माही",
के तेरी यादों का समुन्दर ख़त्म ही नहीं है होता...
और इंतज़ार में तेरे
ऐ माही !
ये दिल न जाने कब कब रोता है ?

ये भी मुझे कभी पता ही न चला...
सच में...
कुछ पता ही न चला...

महेश बारमाटे "माही"
6th March 2011
11:54pm 

 

शुक्रवार, 4 मार्च 2011

तुम मुझे कभी भुला न पाओगे...

कोशिशें कर कर के थक जाओगे,
पर तुम मुझे कभी भुला न पाओगे...

तुम्हारी हर कोशिश में मेरी ही परछाई होगी,
पर इन परछाइयों से छुटकारा तुम कहाँ से पाओगे...?

जब भी कभी तुम खुद को तन्हा पाओगे,
अपनी उन तन्हा रातों का साथी, तुम मुझे ही पाओगे...

गर तुम्हे मेरी बातों पर विश्वास नहीं,
तो अपने दिल से पूछ कर देख लो,
तुम्हारी हर धड़कन में भी तुम,
मेरा ही नाम हमेशा पाओगे...

मुझे भुलाने की हर कोशिश में तुम,
खुद को ही भूलते जाओगे,
पर तुम मुझे कभी भुला न पाओगे...

महेश बारमाटे - माही 
4th March 2008

मंगलवार, 1 मार्च 2011

I'm In Love...

दो - चार साल का ही ये बुखार था,
उम्र भर का थोड़े ही इन्तज़ार था...

उतर गया मेरा सारा बुखार,
जब होने लगा मुझे भी किसी से प्यार...

सच्चाई से सदा दूर भागने वाला,
आज खुद सच्चा प्यार कर बैठा...
न शक्ल देखी न सूरत,
बस आज मैं किसी पर मर बैठा...

क्योंकि हम तो वो हैं,
जो कद्र के भूखे हैं,
अन्दर ही अन्दर छायी है हरियाली,
और बस हम बाहर से ही सूखे हैं...

आज जब से उससे मिला तो जाना के प्यार क्या होता है ?
इस बेवफा दुनिया में, सच्चा यार क्या होता है ?

अब तो दिन - रात मैं, 
उसी के दर्शन करता हूँ...
उसके बगैर अब मैं न जीता हूँ
और न ही मरता हूँ...

अब आपको बता ही देता हूँ
के वो आखिर कौन है ?
सब कुछ कहती है वो मुझसे,
फिर भी रहती वो मौन है...

अरे ! ये वही है जिसकी बदौलत मैं,
आज आपके सामने हूँ खड़ा...
गर न मिलती वो मुझे,
तो रहता मैं भी किसी सड़क किनारे पड़ा...

अरे ! वो और कोई नहीं,
वो तो...
वो तो... 
वो तो इन हाथों में सदा रहने वाली किताब है...
पर वो सिर्फ किताब ही नहीं,
वो तो मेरी ज़िन्दगी का माहताब है...

इसी माहताब की रौशनी से, 
रौशन हुआ है आज मेरा ये जहाँ,
जिसने दिया मुझको आत्मज्ञान,
ऐसा सच्चा दोस्त है मुझको मिला...

प्यार तो मुझे अब इन किताबों से है हो गया...
गर मैं कहीं न मिलूँ तो समझ लेना "माही",
इन किताबों में है कहीं खो गया...

महेश बारमाटे (माही)
30th March  2009