गुरुवार, 27 मार्च 2014

चार दिन की ज़िंदगी ...

चार दिन की ज़िंदगी बची है अब मेरे लिए
फिर जाने क्या समा होगा
आ भर ले फिर बाँहों में मुझे कुछ पल के लिए
फिर कहाँ प्यार का मौसम जवां होगा...

कुछ पल बैठ सामने मेरे
डूब जाने दे इन झील सी आँखों में मुझको
के मौत करीब है अब तो मेरे
फिर कहाँ तेरी आँखों का किनारा होगा ?

कुछ बात कर
आज सुबह से रात कर
ले चल चाँद - तारों के बीच मुझे
के फिर कहाँ सितारों भरा ये आसमान होगा।

मेरी ज़िंदगी के चार दिन
अब न बीते ये तेरे बिन
बस तेरी ख़्वाहिश है माही!
इसे पूरा कर
फिर कहाँ तेरी बाहों का सहारा होगा...

- महेश बारमाटे "माही"