अब तो हर एक के हाथ में पत्थर नज़र आता है.
कहाँ छुपाऊं मैं इन अश्कों इन आंसुओं को,
अब तो हर एक कतरा समंदर नजर आता है...
दिल का अफसाना दिल में ही रह गया,
जिसे सुनाना चाहता था, वह दोस्त भी कहीं खो गया.
किसे बताऊँ अब अपने दिल का हाल,
अब तो हर दोस्त सितमगर नज़र आता है...
रकीबों की साजिश ने, उसको भी मेरा दुश्मन बना दिया,
मेरी यादों को उसने, न जाने कैसे भुला दिया ?
पर आज भी इन आँखों को मेरा इंतजार करता, वो मेरा दिलबर नज़र आता है...
कहाँ बनाऊं मैं अपना शीशे जैसा महल,
अब तो हर एक के हाथ में पत्थर नज़र आता है.
जब तक मेरा हमसफ़र मेरे पास था,
उसका हर एक साया मेरे साथ था.
पर आज तो वह सिर्फ मेरे ख्वाबों में ही आता है,
और आकर कमबख्त बड़ा सताता है,
फिर भी मेरा दिल आज भी उस पर ही प्यार बरसाता है.
तरस गयी हैं आँखे उसका दीदार करने को,
नूर न रहा और अब आँखें भी चली गयीं मेरी,
अब तो इस बेजान शरीर को बस उसी का सहारा नज़र आता है.
उसकी जुदाई ने मेरी हालत ऐसी है कर दी,
के अब तो मुझे हर जगह,
और आज मेरी मौत का मुझे,
सच होता मंज़र नज़र आता है...
- विकास तिवारी और महेश बारमाटे "माही" (VBar)
१० जुलाई २००८...
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नोट - ये कविता मैंने अपने कॉलेज के दोस्त विकास तिवारी के संग मिलकर कॉलेज के दिनों में लिखी थी. उसके साथ मिलकर हमने २ - ३ और भी कवितायें लिखीं. और हमने अपने इस लेखन को नाम देने के लिए एक नया नाम सोचा था "वी बार (VBar)"...
आज विकास मेरे पास नहीं पर मुझे यकीन है की हम फिर एक दिन फिर से और भी कवितायें लिखेंगे...
chaliye; aapne apni dosti ki itni achchi kadra ki........very good........
जवाब देंहटाएं@Ragini
जवाब देंहटाएंहा हा रागिनी जी,
ये तो बस ऐसे विचार थे जो जैसे मन में आये वैसे ही हम दोनों दोस्तों ने कागज़ पे उतार दिया...
मैं इस बात पे कोई टिप्पणी नहीं करूँगा कि मैंने अपनी दोस्ती की कितनी कद्र की है, क्योंकि वो तो मैं और मेरे दोस्त ही जानते हैं और जो सबका मालिक एक है वो भी जानता है कि क्या मेरे दिल में है...
फिर भी आपके मेरे ब्लॉग पे आने का शुक्रिया... !
:)