सोमवार, 19 सितंबर 2022

महफ़िल में...


अब जो आ गए हो महफ़िल में हमारी

एक नज़र खुल के हमसे बात कर लीजिये।


अजी! हमसे ऐसी क्या ख़ता हो गई

क़रीब आ के बता दीजिए।


सुना है ये रुसवाईयाँ

गए ज़माने से साथ हैं आपके

चलो एक मौका और देते हैं

थोड़ा मुस्कुरा लीजिये।


कैसे कहें कि कैसे बेसब्र से बैठे हैं

इंतज़ार में आपके

तोड़ ये चुप्पी अब

हमसे भी दिल मिला लीजिए।


देखो! रूठ जाने की आदत

यूँ अच्छी नहीं ..

कम से कम नाम हमारा ले कर

महफ़िल की रंगत ही चुरा लीजिये।


- महेश "माही"

रविवार, 18 सितंबर 2022

मेरा देश बदल रहा है..




मेरे देश में

अब सब बदल रहा है

देखो न पर

ये बदलाव क्यों खल रहा है..?


जिसे देश ने अपनाया था

आज बिक रहा है

रसूखों की थाली में

सरकारी कबाब सिक रहा है।


"बोलना ही है"

एक किताब बन के रह गई

ईमानदारी अब बस

हिन्दू - मुसलमान बन के रह गई।


क्रांतिकारियों के मुँह पर 

लग गए ताले हैं

लगता है इस भिंडी बाजार में

सब बिकने वाले हैं।


मैं किसी के खिलाफ नहीं

लगता है देश के पास जवाब नहीं।

जो चाहता हूं सुनना

यहाँ ऐसे ज़मीर वाले नहीं।


- महेश "माही"