गुरुवार, 12 जनवरी 2017

बेचैनी..

एक अजीब कश्मकश में हूँ

आज खुद के लिए ही कुछ खास मैं हूँ।

के कुछ गलतफहमियां

जो थी दरमियान हमारे

ख़त्म हो गईं

ख़त्म हुए फासले

पर दूर न हुई ये दूरियां।

तुझसे

शायद खुद से

बात करने को

बेताब मैं

आज कुछ यूँ मचल रहा हूँ

बिन पानी कोई मछली जैसे

उड़ने को बेताब

मेरा हर एक ख्वाब

पर न नींद है

न चैन है

जाने क्यों

दिल ये बेचैन है??

#माही

रविवार, 8 जनवरी 2017

ये ज़िन्दगी..

ज़िन्दगी भी अजीब है

जो बीत गया

उसे याद करती है,

आने वाले कल की

फरियाद करती है,

जो आज है

उसे ठुकरा देती है,

और कल फिर

उसके लिए ही मोहताज करती है।

सच में

ये ज़िन्दगी बड़ी अजीब है

मुझे धूल से उठाती है

किसी के आँखों का सरताज करती है

फिर मिला के उसी धूल में

ये ज़िन्दगी

मुझ पर ही राज करती है।

#माही
3/1/17
10:09pm