शनिवार, 7 मई 2011

विश्वास

ज़िन्दगी में अगर चुनना पड़े,
दो में से कोई एक राह...
तो ऐ मेरे यार!
मेरी एक बात तुम रखना याद,
के "जहाँ चाह, वहाँ राह"...

इसीलिए हमेशा अपनी एक ही मंजिल पे
तुम रखना निगाह...
एक रास्ता गर हो जाए बंद, 
तो बदल देना तुम अपनी राह...

पर मंजिल पर निगाहें, हमेशा जमाये रखना...
अपने दिल में जीत के लिए ललक जगाये रखना...

तुम जरूर जीतोगे,
अगर तुमको है विश्वास...
और गर कभी टूटने न दो,
अपनी ये आस.

चाहे रुक जाये तुम्हारी सांस,
"तुम जरूर जीतोगे"
ऐसा मेरा है - "विश्वास

- महेश बारमाटे "माही"

नोट - ये कविता मैंने तब लिखी थी जब मुझे लिखने की समझ न थी... आशा करता हूँ की आपको ये कुछ हद तक ही सही पसंद जरूर आएगी...

7 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ! माही जी
    इस कविता का तो जवाब नहीं !

    जवाब देंहटाएं
  2. सार्थक लेखन है माही जी....
    सादर बधाई स्वीकारें...

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. अर्थपूर्ण लेखन .....

    सबकी निराशा की आस में , आशा हूँ मैं
    विश्वासघात में ही छिपा ,उसका विश्वास हूँ मैं ||......अनु

    जवाब देंहटाएं
  5. @यशवंत जी : आपने मेरी कविता को अपनी हलचल में शामिल किया, आपका बहुत बहुत धन्यवाद !

    @अनुपमा जी, अंजु जी, और हबीब जी : आप सभी का बहुत - बहुत धन्यवाद

    :)

    जवाब देंहटाएं