दो में से कोई एक राह...
तो ऐ मेरे यार!
मेरी एक बात तुम रखना याद,
के "जहाँ चाह, वहाँ राह"...
इसीलिए हमेशा अपनी एक ही मंजिल पे
तुम रखना निगाह...
एक रास्ता गर हो जाए बंद,
तो बदल देना तुम अपनी राह...
पर मंजिल पर निगाहें, हमेशा जमाये रखना...
अपने दिल में जीत के लिए ललक जगाये रखना...
तुम जरूर जीतोगे,
अगर तुमको है विश्वास...
और गर कभी टूटने न दो,
अपनी ये आस.
चाहे रुक जाये तुम्हारी सांस,
"तुम जरूर जीतोगे"
ऐसा मेरा है - "विश्वास"
- महेश बारमाटे "माही"
नोट - ये कविता मैंने तब लिखी थी जब मुझे लिखने की समझ न थी... आशा करता हूँ की आपको ये कुछ हद तक ही सही पसंद जरूर आएगी...
वाह ! माही जी
जवाब देंहटाएंइस कविता का तो जवाब नहीं !
@संजय भास्कर
जवाब देंहटाएंDhanyawad Sanjay ji
atal vishwas ...sahi baat ...
जवाब देंहटाएंसार्थक लेखन है माही जी....
जवाब देंहटाएंसादर बधाई स्वीकारें...
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जवाब देंहटाएंअर्थपूर्ण लेखन .....
जवाब देंहटाएंसबकी निराशा की आस में , आशा हूँ मैं
विश्वासघात में ही छिपा ,उसका विश्वास हूँ मैं ||......अनु
@यशवंत जी : आपने मेरी कविता को अपनी हलचल में शामिल किया, आपका बहुत बहुत धन्यवाद !
जवाब देंहटाएं@अनुपमा जी, अंजु जी, और हबीब जी : आप सभी का बहुत - बहुत धन्यवाद
:)