किसी को दर्द दे जाता है...
या अल्लाह ! तू ऐसे रिश्ते आखिर किस लिए बनाता है ?
के दिल दुखता होगा तेरा भी...
जब कोई इन्सां किसी की मौत बन जाता है.
किसी का चैनो-सुकून छीन के वो
अपनी नयी दुनिया बसाता है.
और फिर कोई तीसरा आकर,
तेरी कायनात को ज़मीन के टुकड़ों में बाँट जाता है.
तेरे ही नाम पर खुद को तेरा
अजीज़ बताने वाला इन्सां, मज़हबी दंगे करवाता है.
तो कोई सारे हिन्दुस्तां का
दिल चीरता चला जाता है.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
हे परम पिता परमेश्वर !
क्या इसी तरह की तू दुनिया बनाना चाहता है ?
क्या तेरे दिल में दर्द नहीं होता,
जब एक छोटा सा मजाक दो दिलों को तन्हा कर जाता है ?
जब एक सच्चा दोस्त,
अपने दोस्त को रुसवा कर जाता है ?
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
ऐ खुदा !
मालुम है के तुझे भी
हमारा दुःख तन्हा कर जाता है...
तेरी ही दुनिया में हर इन्सां
तुझे ही रुसवा कर जाता है...
तो फिर तोड़ के सारे बंधन
आजा हमें गले लगा ले,
ले अब तो तन्हा रहा नहीं जाता है...
और तेरी तन्हाई का भी
दर्द सहा नहीं जाता है...
के लाख मर्तबा टूट चूका है "माही"
तेरे इंतजार में,
अब तो इस सारी कायनात से
तेरे बिन रहा नहीं जाता है...
महेश बारमाटे "माही"
17th March 2011
Kya kehney hai maahi aapkey bohut khoob :)
जवाब देंहटाएंख़ुदा ने यह दुनिया इसलिए नहीं बनाई है कि इंसान यहां सदा रहे बल्कि उसने यह दुनिया अपने किसी बड़े मक़सद के लिए बनाई है और इंसान को भी उसने उसी बड़े मक़सद के लिए तैयार करने के लिए इस दुनिया में अस्थायी रूप से छोड़ रखा है। उसने इंसान को शक्ति दी और अपना हुक्म दिया। इंसान ने अपनी शक्ति उसका हुक्म भुलाकर इस्तेमाल की और दुनिया में तबाही फैल गई। दुखद यह है कि इंसान आज भी यही कर रहा है। अपनी तबाही का ज़िम्मेदार इंसान ख़ुद है कि इंसान वह करने के लिए तैयार नहीं है जिसे करने के लिए उसे पैदा किया गया और इस दुनिया में उसे रखा गया।
जवाब देंहटाएंयह पंक्तियाँ श्री महेश बार्माते 'माहि' जी की पोस्ट पढ़कर लिखनी पडीं , जिसका लिंक यह है :
http://vedkuran.blogspot.com/2011/05/blog-post_25.html
मैं माफ़ी चाहूँगा अनवर जी !
जवाब देंहटाएंतथा सभी गणमान्य ब्लॉगरगण ...
मैंने ये कविता, ग़ज़ल या जो कहें आप इसे, किसी के दिल को दुःख पहूँचाने के लिए नहीं लिखी थी,
बस दिल में ख्याल आया तो लिख डाली.
फिर भी अगर आपको कुछ बुरा लगा हो तो क्षमा करें...
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/05/ias.html
जवाब देंहटाएंनेक आदमी अपने घर, शहर और क़ौम का नाम रौशन करता है और ग़ददारों की वजह से इन पर हमेशा कलंक का टीका लगता है। यह ख़ुद लगता है। न तो यह किसी के लगाने से लगता है और न ही यह किसी के मिटाने से मिटता है।
सरकार किसी को योग्य पाकर उस पर विश्वास करती है उसे ट्रेनिंग और सुविधाएं देती है ताकि वह क़ौम के लिए सरकारी मंशा के मुताबिक़ काम कर सके लेकिन आदमी लालच में पड़कर रास्ते से भटक जाता है और ज़िल्लत उठाता है।
इंसान जब भी निजी एजेंडे पर चलेगा, भटक जाएगा।
यही मिसाल ख़ुदा और बंदे के रिश्ते की भी है।
ख़ुदा ने इंसान को योग्यता दी और उसे सबसे सुंदर ग्रह पृथ्वी पर बसाया। उसने इंसान को ज्ञान दिया और भलाई को बुराई से अलग ज़ाहिर करके उसके लिए बुराई को हराम और भलाई को लाज़िम क़रार दिया लेकिन इंसान लालच में पड़कर रास्ते से हट गया और अपने ख़ुदा की मर्ज़ी के मुताबिक़ जीने के बजाय वह अपने निजी एजेंडे के मुताबिक़ जीने लगा। रास्ते से हटकर वह अपनी मंज़िल से दूर ही होता जा रहा है। ऐसे इंसान बहुत हैं। ऐसे सभी इंसान ख़ुदा के ग़ददार हैं। आज ज़मीन पर ग़ददार ही ग़ददार हैं और ख़ुदा के वफ़ादार बहुत ही कम हैं।
हम वफ़ादार बनें ख़ुदा के भी और अपने मुल्क के भी, इस्लाम यही सिखाता है। मुझे यही ज्ञान है और यही ज्ञान मैं बांटता हूं।
बहुत से सवालों के जबाब मांगती है रचना इंतजार रहेगा.........
जवाब देंहटाएंहर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।
जवाब देंहटाएंये साध्वी,स्वामी को क्या सीखा दिया
जवाब देंहटाएंफोड़तें हैं वह बम हिंदुस्तान में ।
किस तरह निपटेँगी अब इनसे हकूमत
कथित राष्ट्रवादी शामिल है इस काम में ।
आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया जो आपको मेरी ये रचना पसंद आई...
जवाब देंहटाएं@Sunil Kumarसुनील जी... किस बात का इंतजार है? हमें भी बताएं ?
जवाब देंहटाएंजो भी सवाल है बताएं... शायद मेरे पास भी जवाब हो...
अच्छी रचना...
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