सोमवार, 19 सितंबर 2022

महफ़िल में...


अब जो आ गए हो महफ़िल में हमारी

एक नज़र खुल के हमसे बात कर लीजिये।


अजी! हमसे ऐसी क्या ख़ता हो गई

क़रीब आ के बता दीजिए।


सुना है ये रुसवाईयाँ

गए ज़माने से साथ हैं आपके

चलो एक मौका और देते हैं

थोड़ा मुस्कुरा लीजिये।


कैसे कहें कि कैसे बेसब्र से बैठे हैं

इंतज़ार में आपके

तोड़ ये चुप्पी अब

हमसे भी दिल मिला लीजिए।


देखो! रूठ जाने की आदत

यूँ अच्छी नहीं ..

कम से कम नाम हमारा ले कर

महफ़िल की रंगत ही चुरा लीजिये।


- महेश "माही"

रविवार, 18 सितंबर 2022

मेरा देश बदल रहा है..




मेरे देश में

अब सब बदल रहा है

देखो न पर

ये बदलाव क्यों खल रहा है..?


जिसे देश ने अपनाया था

आज बिक रहा है

रसूखों की थाली में

सरकारी कबाब सिक रहा है।


"बोलना ही है"

एक किताब बन के रह गई

ईमानदारी अब बस

हिन्दू - मुसलमान बन के रह गई।


क्रांतिकारियों के मुँह पर 

लग गए ताले हैं

लगता है इस भिंडी बाजार में

सब बिकने वाले हैं।


मैं किसी के खिलाफ नहीं

लगता है देश के पास जवाब नहीं।

जो चाहता हूं सुनना

यहाँ ऐसे ज़मीर वाले नहीं।


- महेश "माही"

मंगलवार, 13 जुलाई 2021

कुछ तो हुआ..

गुजरती रात को दिन का सलाम मालूम हुआ
हवा का झोंका कुछ यूं गुजरा 
जैसे तुम्हारे दुपट्टे ने हो मुझे छुआ...।

लोग बात करते हैं तेरी
मेरे बहाने से
मैंने भी इन्कार न किया
कि तू ने मेरी धड़कनों को था छुआ..।

लो फिर आ गए 
आँखों में आँसू 
तुम्हें याद करते करते
और मुझे याद नहीं
वो कौन सा पल था
जब तुम्हें मुझसे
इश्क़ हुआ।

रोज रात तेरी कहानी
तैरती है आँखों के अँधियारे में
जुगनू से चमक उठी हँसी तेरी
लगे जैसे तेरे दिल में अब कुछ कुछ हुआ।

मेरे लिखे पे मत जाना
जाने क्या क्या लिख बैठता हूँ मैं
बस वो एहसास याद रखना
जब तेरे दिल को इन धड़कनों ने छुआ।

- महेश माही

रविवार, 20 जून 2021

मुझे बेवफा न समझ..


तेरी सोच का मैं गुमान हूँ
मुझे इश्क़ की बहार न समझ।
मैं मजबूरियों में जो चला गया
मुझे बेवफा न समझ।

किसी दिन वापस आऊँगा
मुझे कल की बात न समझ।
मुझे समय पर है यक़ीन
मुझे वस्ल-ए-रात न समझ।

मेरी गुमनामियाँ तुझसे ही हैं
जो तू न मिला तो मैं क्या रहा
लिख रहा हूँ आज भी एक खत
मुझे डाकिया न समझ।

क्या पता, है ये क्या लिखा
मैं अनपढ़, मैंने कुछ न सीखा।
मेरे हाथ बस चलते रहे
कलम को नागवार न समझ।

थोड़ी तवज्जोह में खुश हो लूँ मैं भी
अगर वो तेरी तरफ से हो..।
दिल का कोना-कोना धड़कता है अब भी तेरे ही लिए
मुझे कोई ग़ैर यार न समझ..।

- महेश "माही"

बुधवार, 16 जून 2021

मेरे शहर की खिड़कियाँ

मेरे शहर की खिड़कियाँ
अब जंगलों में सिमट रही हैं
रौशनी का पता नहीं है
और ऑक्सीजन की भी कमी है।

सुना है कोई बड़ी बीमारी आई है
मैंने नन्हें कंधों पे लाशें देखी हैं
कोई आस्था के नाम पर लूट रहा है
कोई प्राइवेटाइजेशन में लुट रहा है।

सरकारें धोखा दे रही हैं
सरकारें धोखा खा रही हैं
पहले ईमान बिक जाते थे 
आज देश बिक रहा है।

है खरीददार कई
कुछ हुकूमतें तैयार हो रही हैं
घरों के कैदखानों में सिमटती नन्हीं ज़िंदगियाँ
खिड़कियों से शहर को ताक रही हैं।

मेरे शहर की ये खिड़कियाँ..

- महेश "माही"

शनिवार, 1 अगस्त 2020

वो, महफ़िल और इश्क़

मैंने कुछ कहानियाँ गढ़ीं
कुछ किस्से कहे
वो शामिल थे मुझमें
वो सुनते रहे।

वो दूर बैठे थे महफ़िल में
तमाशबीन बन कर
सीने से लगने को जी किया
अश्क़ बहते रहे।

महफ़िल में हर शख्स ने 
तारीफ में उनकी वाहवाही लुटाई
इशारों - इशारों में नज़रें फिरा कर हम भी
बस उनके चेहरे को ही देखते रहे।

चारों तरफ खामोशियाँ सी फैल गईं
जब लबों पे नाम तेरा आया माही!
तुमने इज़हार-ए-ज़ुल्म-ए-मुहब्बत कर लिया
तुम जो महफ़िल को छोड़ गए।

- महेश "माही"

बुधवार, 22 जुलाई 2020

हाँ! यही तो प्यार है..




मेरी लिखावटों के पीछे
दरार है
मेरी लिखावटों के पीछे 
दरार है
हाथ काँपते हैं मेरे
तेरा नाम लिखने से
हाँ! यही तो प्यार है।

तुझसे छुपाया नहीं जाता
मुझसे बताया नहीं जाता
आँख बंद करके भी हो जाये
ये कैसा दीदार है..?
हाँ! यही तो प्यार है।

दर-ओ-दीवार-ए-दिल पे तेरी तस्वीर
जो लगा रखी है
इल्तिज़ा लोगों की आती है 
कि एक बार तो पर्दा उठे।
मैं न कर देता हूँ सबसे
तुझसे जो मेरा इक़रार है।
हाँ! यही तो प्यार है।

किताबों के बीच में
गुलाबों सा सजाया है तुझे
करके सजदा हजारों दफा
अपना बनाया है तुझे
किताबी सा नहीं माही!
मेरी रूह का ये इज़हार है
हाँ! मुझे तुमसे प्यार है।

- महेश "माही"

शनिवार, 4 जुलाई 2020

वो पक्के रंग वाला लड़का



वो पक्के रंग वाला लड़का
लोग उसे काला
तो कभी सांवला कहते थे।

गोरा होना उसके बस में न था कभी
बस अपने रंग में ढल जाना
खुद को बुरा न मानकर
बस खुद को अपनाना
ही था उसके बस में।

और फिर 
उसने किसी गोरे को गोरा कहकर
नीचा नहीं दिखाया
पर उसका रंग
जाने क्यों गोरे लोगों को कमतर लगता ?

आज उसके पक्के रंग की तरह
उसका निश्चय भी पक्का है
कि गोरा रंग तो धूप में ढल जाएगा
क्योंकि वो कच्चा है।
और पक्का रंग 
छूटता नहीं कभी
वो और पक्का होता जाता है।

समय और प्रकृति कभी
कोई भेद नहीं करती।
फिर ये भेद कहाँ से आया।
क्यों एक पुराने गाने में
राधा को गोरी, और कृष्ण को काला बताया
क्यों कृष्ण ने खुद को
खुद से ही कमतर जताया..?

हाँ! वो पक्के रंग वाला लड़का
कई कच्चे रंग वालों से
बेहद अच्छा है।
क्योंकि
खुद को कमतर न समझने वाला वो लड़का
आज सबसे सच्चा है।

- महेश "माही"