शुक्रवार, 27 जून 2014

जवाब-ए-ख़त...

मत भेज अब मेरे जवाब-ए-ख़त माही!
के तेरे इंतज़ार में, मैं भी अपना पता भूल बैठा हूँ...

दिन भूल बैठा हूँ
शाम भूल बैठा हूँ
जो रूठा था मैं तुझसे
वो खता भूल बैठा हूँ।

लिखता रहता था
ख़त तेरी याद में
आज मैं अपना ही
फलसफ़ा भूल बैठा हूँ...

अब तू मिल जाये
तेरी किस्मत होगी
कभी सुना था फरिस्तों से
वो किस्मत का लिखा भूल बैठा हूँ।

जा रहा हूँ अब मैं
मीलों दूर तेरी दुनिया से
तुझे जो बनायी मंज़िल अपनी
तो हर रस्ता भूल बैठा हूँ।

क्या लिखना था तेरे लिए
और क्या लिख बैठा हूँ
मैं तो तेरे इश्क़ में माही!
खुद का खुद से रिश्ता भूल बैठा हूँ...।

- महेश बारमाटे "माही"

गुरुवार, 26 जून 2014

कहानी तेरे नाम की...

लिखी थी कहानी तेरे नाम की
मुझमे थी ज़िंदगानी तेरे नाम की

हवा में ठंडक, फिजा में रंगत
और चुनरी थी धानी तेरे नाम की

गुलों में गुलाब, मयखाने में शराब
साकी भी थी दीवानी तेरे नाम की

पुकारता चला था मैं, हर गली, हर शहर
लबों पे थी कहानी तेरे नाम की

एक कहानी, तू पगली दीवानी
मेरी भी एक थी रानी तेरे नाम की

सूखी स्याही, पन्नों पे फैला अश्कों का पानी
खो गई मुझसे, ये ज़िंदगानी तेरे नाम की

अब जो जी रहा हूँ
तेरे इंतज़ार में माही!
आ पूरी करें
फिर ये कहानी तेरे नाम की

लिखी थी जो
कहानी तेरे नाम की
तुझ बिन अधूरी है
मेरी ज़िंदगानी तेरे नाम की...

- महेश बारमाटे “माही”

(Photo Courtesy : images.google.com)

शनिवार, 21 जून 2014

दिल के किसी कोने में...

दिल के किसी कोने में
एक दर्द छुपा रखा है
अपनी तन्हाइयों को मैंने
खुद से बचा रखा है...

जाने किस दर्द की
दवा बन के तू आया था
के तेरा ग़म भी मैंने
अपने इस दर्द-ए-दिल से बचा रखा है।

रोता है दिल
तन्हाइयों में अक्सर
की थी जो दुआ - खुशी की तेरी
इसीलिए इन अश्कों को मैंने
आँखों में जमा रखा है...

एक नदी सी थमी है
कुछ - कुछ बर्फ भी जमी है
सैलाब है कोई तेज़ाबों का
आज अपना हर दर्द जला रखा है ।

वो तो लिख गया कहानी मेरी
बरसों पहले "माही"
आज जाना के क्यों दिल ने खुद को
दर्द का कब्रिस्तान बना रखा है।

- महेश बारमाटे "माही"

बुधवार, 4 जून 2014

यकीन...

तू ज़िंदगी भर बस मुझे ही चाहेगा माही!
ये यकीन, तू ने मुझे हर ख़्वाब में दिलाया है।

जाने कितनी कवितायें, 
ग़ज़ल, 
शेरों-शायरियाँ
लिखने के बाद ही 
मैंने तुझे पाया है।

दूरियाँ, 
रिश्तों पे कभी भारी पड़ भी गई तो क्या ?
तू तो बस मेरा,
हाँ!
बस मेरा सरमाया है।

रब जाने के क्या हकीकत होगी,
तेरी – मेरी कहानी की ?
मैं रहूँ, न रहूँ, पर तेरे दिल में रहूँगा सदा,
ये यकीन, तू ने ही मुझे दिलाया है।

किसी अधूरी कहानी से
ये अल्फ़ाज़ मेरे
ये कहानी करेंगे बयां,
के तू ने ही जीता है माही!
और तू ने ही मुझे हराया है।

- महेश बारमाटे “माही”

रविवार, 1 जून 2014

ज़िंदगी के मायने...

ज़िंदगी के मायने 
ज़िंदगी भर ढूंढते रहेंगे
अगर तुझे खो दिया
तो जाने कहाँ ढूंढते रहेंगे।

अब दीदार की तमन्ना है
इक मुलाकात की तमन्ना है।
तू अगर किसी और का हो गया
तो खुद को हम कोसते रहेंगे।

तुझे पाने की ख़्वाहिश नहीं
अपना बनाने की ख्वाहिश नहीं,
बस तुझमे समाना है,
अगर बिखर गया तो
फिर खुद को कहाँ खोजते रहेंगे।

एक बार आ
मुझ में समा जा
बसा के मन मंदिर में माही!
तुझे हर वक़्त
पूजते रहेंगे।

- महेश बारमाटे "माही"