शुक्रवार, 4 अप्रैल 2014

मेरा कल...

ऐसा लगता है कि जैसे
कल की ही बात हो

कल ही हम मिले
और कल ही बिछड़ गए

कल ही दिल मिले
कल ही प्यार हुआ

कल ही कल में
इजहार - ओ - इक़रार हुआ

कल ही कल में
कई ज़िंदगियाँ गुजारी
कल ही कल में
खोयी और फिर पायी हमने खुमारी।

कल ही कल में
सातों जनम जी गए
और
कल ही कल में
हम मर गए

कल ही कल
कल ही कल
कल ही कल
जाने क्यूँ नही बीतता आज
मेरा वो... बीता हुआ कल?

आज मेरे
उस कल में
बीत गईं सारी खुशियाँ
और सारे ग़म...
सारे रिश्ते - नाते
वो पल
जिनमे हम थे
हँसते - गाते ।

अब क्या है
पास मेरे
ये सोचता हूँ
तो याद आता है मुझे
मेरा कल।

माही!
तू उस पल से इस पल तक
मेरे कल से, मेरे कल तक
आज भी है साथ मेरे
यादों में, बाहों में
नज़रों में, निगाहों में
शामिल है
मेरे काबिल है
जैसे हो
तू मेरा आज
और
तू ही मेरा कल...


- महेश बारमाटे "माही"

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