सोमवार, 19 सितंबर 2022

महफ़िल में...


अब जो आ गए हो महफ़िल में हमारी

एक नज़र खुल के हमसे बात कर लीजिये।


अजी! हमसे ऐसी क्या ख़ता हो गई

क़रीब आ के बता दीजिए।


सुना है ये रुसवाईयाँ

गए ज़माने से साथ हैं आपके

चलो एक मौका और देते हैं

थोड़ा मुस्कुरा लीजिये।


कैसे कहें कि कैसे बेसब्र से बैठे हैं

इंतज़ार में आपके

तोड़ ये चुप्पी अब

हमसे भी दिल मिला लीजिए।


देखो! रूठ जाने की आदत

यूँ अच्छी नहीं ..

कम से कम नाम हमारा ले कर

महफ़िल की रंगत ही चुरा लीजिये।


- महेश "माही"

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