पहले हम दोस्त बने,
और फिर
कुछ दिन बाद,
हमारी दोस्ती...
दोस्ती से भी बढ़ कर हो गई...
वो एहसास...
न तो दोस्ती थी
और न ही प्यार था...
वो जो कुछ भी था
शायद हमारी किस्मत को नागवार था...
के अब दरमियाँ हमारे,
न तो दोस्ती रही
और न ही प्यार...
और न ही रहा अब
दोस्ती से भी बढ़कर कुछ और...
फिर भी एक रिश्ता सा,
आज भी महसूस होता है...
के दिल,
बीते दिन कर के याद
आज भी रोता है...
के अब तो बस,
कुछ तो
ऐसा बचा है हमारे बीच
के सब कुछ बिखरा हुआ सा लगता है
और मेरा सारा जहां
अब कुछ अजीब सा लगता है...
अब तो बस एक विश्वास बाकी है ,
जो कब डगमगा जाए...
कुछ कहा नहीं जा सकता...
और तेरे बिना अब इस दिल से
रहा भी नहीं जा सकता...
और एक विश्वास का रिश्ता है
बचा अब तेरे मेरे दरमियाँ...
के जो जोड़े हुए है
दिल के तारों को
और फिर
कुछ दिन बाद,
हमारी दोस्ती...
दोस्ती से भी बढ़ कर हो गई...
वो एहसास...
न तो दोस्ती थी
और न ही प्यार था...
वो जो कुछ भी था
शायद हमारी किस्मत को नागवार था...
के अब दरमियाँ हमारे,
न तो दोस्ती रही
और न ही प्यार...
और न ही रहा अब
दोस्ती से भी बढ़कर कुछ और...
फिर भी एक रिश्ता सा,
आज भी महसूस होता है...
के दिल,
बीते दिन कर के याद
आज भी रोता है...
के अब तो बस,
कुछ तो
ऐसा बचा है हमारे बीच
के सब कुछ बिखरा हुआ सा लगता है
और मेरा सारा जहां
अब कुछ अजीब सा लगता है...
अब तो बस एक विश्वास बाकी है ,
जो कब डगमगा जाए...
कुछ कहा नहीं जा सकता...
और तेरे बिना अब इस दिल से
रहा भी नहीं जा सकता...
और एक विश्वास का रिश्ता है
बचा अब तेरे मेरे दरमियाँ...
के जो जोड़े हुए है
दिल के तारों को
जैसे फूल से जुडी होती हैं पंखुड़ियां...
और आज दिल का हर तार
चीख - चीख के कह रहा है
के टूटने न दे मुझे,
ओ माही मेरे !
के इस बार
दिल की हर धड़कन
इन तारों से ही धड़क रही है...
धड़क रही है ताकि
तुझे देख के ही वो जी ले
जिसके संग जीने का तूने
ओ माही !
सपना देखा था...
आज अपना वो सपना मत खो
के टूट जायेगा वो भी
देख के तुझे...
जिसके सपनों में...
शायद तू कभी न था...
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नोट - ये जो कुछ भी आपने पढ़ा अभी... शायद ये कोई कविता हो या शायद न हो... मुझे नहीं मालूम... पर ये जो भी है मेरे दिल से निकले हुए लफ्ज हैं जिनको मैं कागजों पे उतारता चला गया, जो कुछ भी आया मन में उस वक्त... बस मैं तो अपनी धुन में लिखता चला गया...
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- महेश बारमाटे "माही"
२३ सितम्बर २०११
Bahut hi khubsurat ahsaas.
जवाब देंहटाएंखूबसूरत एहसास की सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं------
आप चलेंगे इस महाकुंभ में...
...क्या कहती है तबाही?
सुन्दर अभिव्यक्ति,भावपूर्ण.
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिवयक्ति.....
जवाब देंहटाएंचन्द्र भूषण जी, ज़ाकिर अली जी, सुरेश जी, अरुण व सुषमा जी आप सभी ने मेरी रचना को पसंद किया, उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद...
जवाब देंहटाएंvery nce...
जवाब देंहटाएं♥
जवाब देंहटाएंएक रिश्ता आज भी महसूस होता है …
जो लिखा वह भावनाओं का ज्वार है महेश जी !
जज़बात सहेज लेने चाहिए … मन को सुकून मिलता है …
आपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व एवं दुर्गा पूजा की बधाई-शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
अतिसुन्दर!
जवाब देंहटाएंराजेंद्र जी, अंकुर जी और मेरी प्यारी बहना अमारा :) आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंNice .
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