रविवार, 18 सितंबर 2011

इक नई सरगम...

सुबह की पहली किरण का आगाज,
देखो ले के आया है एक नया दिन, एक नया आज।

वो देखो चली आ रही है ठंडी पुरवाई,
के लगता है जैसे इसने रात के संग होली हो मनाई।

पंछियों का ये सुरम्य संगीत,
पल भर में हर किसी को बना ले ये अपना मीत।

वक्त की शांत गलियाँ,
बस अब गूँजने वाली हैं।
वो पल जो कभी था बिलकुल खाली,
इसकी भी झोली अब खुशियों से भरने वाली है।

पर दो आँखों मे अब भी कोई,
सपना सज रहा है कहीं।
और वो मेरा मालिक,
सबकी किस्मत आज फिर रच रहा है कहीं।

जाने क्या होगा उसके मन में समाया,
के कौन जान पाया है के आखिर
किस्मत से क्या खोया और क्या पाया ?

वो देखो सूरजमुखी को भी
जैसे नई जान मिल गई,
मस्जिदों में किसी की नमाज़ को
एक नई पहचान मिल गई।

के ये नया आलम,
फिर ले के आया है इक नई ख़ुशी और इक नया गम...
आज तू भी जी ले इस पल को "माही",
के इस पल ज़िंदगी भी गा रही है,
इक नई सरगम...

- महेश बारमाटे "माही"
13 - 09 - 2011

10 टिप्‍पणियां:

  1. पंछियों का ये सुरम्य संगीत,
    पल भर में हर किसी को बना ले ये अपना मीत।

    अच्छा है..

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  2. प्रभात का सूर्योदय नया दिन ,नए सपने ,संगीत ,सरगम " माहीजी " सुंदर सपनो सी सुबह को साकार कर दिया आपने

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  3. समीर जी और विजयकान्त जी... आप दोनों का बहुत बहुत धन्यवाद... :)

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  4. भावों की अच्छी अभिव्यक्ति , सुंदर.......

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  5. आप सभी लोगों का बहुत बहुत शुक्रिया जो आपने मेरी रचना को पसंद किया :)

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  6. बहुत सधे शब्दों की अभिव्यक्ति

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  7. आपका बहुत बहुत धन्यवाद अनु जी... :)

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