एक चाहत थी,
तुमसे मिलने की...
गर पूरी हो पाती तो...
एक चाहत थी,
तेरे संग कुछ वक़्त साथ बिताने की...
गर पूरी हो पाती तो...
तुमसे मिलने की...
गर पूरी हो पाती तो...
एक चाहत थी,
तेरे संग कुछ वक़्त साथ बिताने की...
गर पूरी हो पाती तो...
एक चाहत थी,
तेरे संग हंसने गाने की...
गर पूरी हो पाती तो...
एक चाहत थी,
तेरी हर ख़ुशी - ओ - गम में तेरा हर पल साथ निभाने की...
गर पूरी हो पाती तो...
एक चाहत थी,
बहुत कुछ समझने - समझाने की...
गर पूरी हो पाती तो...
और आज पूछ रही हो तुम,
के क्या चाहत है मेरी...
अब कैसे कहूँ तुमसे मैं...
के मेरी तो बस चाहत थी यही...
तेरे संग सातों जनम बिताने की...
बन के तेरा "माही"
तुझमें खो जाने की...
पर काश पूरी हो पाती तो... !
- महेश बारमाटे "माही"
mhesh bhaai chaahat ka vrnan bhtrin hai ishvar jldi hi aapki chaht puri kre aesi hmaari dua hai .akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंAkela ji...
जवाब देंहटाएंaapki duaaon ka bahut - bahut shukriya...
अगर सारी ख्वाहिशें पूरी हो जाती तो क्या बात थी. उम्दा रचना.
जवाब देंहटाएंऔर आज पूछ रही हो तुम,
जवाब देंहटाएंके क्या चाहत है मेरी...
अब कैसे कहूँ तुमसे मैं...
के मेरी तो बस चाहत थी यही...बहुत ही खूब कहा आपने..... बेहतरीन....
bhaut hi khubsurat aur umda rachna...
जवाब देंहटाएंवाह ,
जवाब देंहटाएंक्या बात है जी !
बहुत खूब...कुछ ख्वाहिशें तो पूरी हो ही जाती हैं...
जवाब देंहटाएंइन चाहतो का अजीब संसार है ........कुछ पूरी होती है और कुछ अधूरी ही रह जाती है ......
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
कभी किसी को मुकम्बल जहां नहीं मिलता किसी को ज़मीन तो किसी को आसमान नहीं मिलता ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर अपप्का स्वागत है
जवाब देंहटाएं@अमित जी : सही कहा आपने... आपका बहुत बहुत धन्यवाद !
जवाब देंहटाएं@सुषमा "आहुति" जी : आपको मेरी कविता पसंद आई उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद
@अनवर जी : आपका बहुत बहुत शुक्रिया !
@ समीर जी : आप आए मेरी कविता को चार चंद लग गए... आपका बहुत बहुत शुक्रिया !
@अंजु जी : आपका बहुत बहुत शुक्रिया !
@पल्लवी जी : आपके ब्लॉग पे जल्द से जल्द आने की कोशिश करूंगा॥ काम की अधिकता ने मुझे ब्लॉग जगत से दूर कर दिया है जिसका मुझे खेद है...