मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

बेवफा

जब उनको दिल लगाना न आया,
तो उन्होंने हमसे दिल्लगी कर ली.
पर हम तो समझे इसे दिल की लगी,
और इश्क में उनके हमने, खुदकुशी कर ली.

जब मेरी मौत पर उन्होंने, दो आँसू बहाए तो लगा,
के मेरी मुहब्बत को ज़न्नत मिल गया...
पर उनके झूठे अश्कों की धार में
मेरा सारा वहम धुल गया...

मुझे लगा के वो भी मुझसे सच्चा प्यार करते हैं,
पर वो तो एक आशिक के दिल से सिर्फ खिलवाड़ करते हैं.

उन्होंने जब माँगी,
तो उनके इश्क में हमने भी दे दी जान,
पर वो आज तक न सके,
कभी मेरे प्यार को पहचान...

मेरी मौत को वो भूल गए, एक दुर्घटना समझ कर.
और मेरे साथ को वो भूल गए, शायद एक बुरा सपना समझ कर.

तभी तो आज मेरी मुहब्बत ही मुझ पर हँस रही है
जैसे कोई नागिन, फन फैलाये मुझे डस रही है.

अब उनको कैसे मैं कह दूँ, "बेवफा"
जब मेरी किस्मत ने ही न की कभी मुझसे कोई वफ़ा ?

इसलिए ऐ सनम !
आज मैं तुझको माफ़ करता हूँ...
तुझे न मिले कभी ऐसा कोई धोखा,
यही खुदा से आज मैं फरियाद करता हूँ...

महेश बारमाटे "माही"
27th Oct. 2007

7 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर अभिव्यक्ति बेवफाई की .आपकी रचनाओ को पढ़ा, एक अहसास है जो ,दिल के पास है . और इश्क मैं उनके हमने ,खुद ख़ुशी कर ली (. कृपया लिखना आप शायद ख़ुदकुशी चाहते है देख लेवे एक बार .)

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  2. @Hemant ji : aapka bahut bahut dhanyawad, par aapki baaten mujhe samajh me nahin aayin...

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  3. महेशजी , कविता की उक्त पंक्ति मैं लेखन की गलती नज़र आ रही है .जो शब्द आपने लिखा है "खुदखुशी " वह मेरे ख्याल से "ख़ुदकुशी " होना चाहिए .

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  4. आखिर दोनों शब्दों मे अंतर क्या है ?
    मेरे ख्याल से दोनों का मतलब आत्महत्या ही होता है...

    अगर मैं गला हूँ तो कृपया बताएं... मैं अपनी गलती सुधारणा चाहूँगा, और आपका आभारी रहूँगा...

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  5. हेमंत जी आपके अनुसार मैंने अपनी गलती सुधार ली है...

    आपका बहुत बहुत धन्यवाद

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