रविवार, 24 अप्रैल 2011

तेरा ही इंतजार...

कितनी हसरतों से मैंने, तुझसे दिल लगाया था.
एक तेरे लिए ही सारी दुनिया को ठुकराया था.

तेरी हर मुस्कान पे, अपना दिलो-जाँ लुटाया था.
तेरे लिए ही तेरे सरे गमो को अपनाया था.

खुद रोकर भी तुझको,मैंने हँसना सिखाया था.
तन्हाइयों में अपने दिल के करीब तुझको ही पाया था.

पर जाने क्यों तुझे मुझ पर एतबार न हुआ,
जाने क्यों तुझे कभी मुझसे प्यार न हुआ...

क्यों तू मुझसे हो गई इतनी खफ़ा,
के लोग कहने लगे हैं, आज तुझे ही बेवफा ?

पर दिल अब भी कहता है मेरा, के तू मेरे लिए बेवफा नहीं.
मेरी जुबाँ जो भी कहे, पर अब तू इस दिल से जुदा नहीं...

क्योंकि मैंने तुझसे ही किया है प्यार,
जो होता है बस एक बार.
कल भी करता था,
आज भी कर रहा हूँ.
और हमेशा करता रहूँगा,
मैं...
सिर्फ और सिर्फ
तेरा ही इंतजार...

महेश बारमाटे
27th July 2008

3 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ! जी,
    इस कविता का तो जवाब नहीं !

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  2. कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
    वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
    डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो NO करें ..सेव करें ..बस हो गया .

    जवाब देंहटाएं
  3. @संजय भास्कर
    dhanyawad bhaskar ji... maine word verification hata dia hai... asuvidha ke liye maafi chahta hoon

    जवाब देंहटाएं