आधुनिक इंसान...
जाने क्या से क्या हो गया हूँ मैं....,
इंसानियत की तलाश में इन्सां हो गया हूँ मैं .
जब तक मैं बच्चा था, शायद तब तक ही मैं अच्छा था .
बचपन में न तो किसी से कोई भेदभाव और न ही कोई नीच-ऊँच .
पर अब तो हर इन्सां की है अपनी ही फितरत,
हर कोई चाहता है के वो जाए अपनों से ही थोड़ी ऊंचाई पर पहुँच .
अपने बचपन पीछे छोड़ता हुआ अब बड़ा हो गया हूँ मैं,
इंसानियत की तलाश में इन्सां हो गया हूँ मैं .
अब तो हर घर में चल रही महाभारत है,
हर कोई कर रहा दुर्योधन का ही स्वागत है .
सुग्रीव और हनुमान ने तो अब पैदा होना ही है बंद कर दिया,
क्योंकि राम मिलते नहीं यहाँ,
आज तो हर जगह रावण की ही आवभगत है.
धर्म के नाम पर इन्सां को बांटने वाला धर्मात्मा हो गया हूँ मैं,
इंसानियत की तलाश में इन्सां हो गया हूँ मैं .
धन के लालच ने मुझको है अँधा कर दिया,
क्योंकि आज मैंने अपनों का ही है सौदा कर लिया.
आज हर घर में है हो रहा , द्रौपदी का चीर-हरण,
श्री कृष्ण को भी आज अपने भक्तों पर है आ रही बहुत शरम.
दुनिया की नज़र में बहुत बड़ा सौदागर हो गया हूँ मैं,
इंसानियत की तलाश में इन्सां हो गया हूँ मैं .
जो मैं खुद न कर सका, वही मैंने अपने प्रवचनों में मैंने औरों को करने को कहा,
अपना ईमान बेचकर मैं, अमीरों की सुनता रहा और बस करता रहा.
जगन्नाथ की संतान होते हुए भी, एक इन्सां के हाथों की कठपुतली हो गया हूँ मैं,
इंसानियत की तलाश में इन्सां हो गया हूँ मैं .
जाने क्या था और क्या हो गया हूँ मैं...?
अपनों के लिए पराया और गैरों के लिए और भी गैर हो गया हूँ मैं.
आज तो लगता है के बस अपना ही बन के रह गया हूँ मैं.
इंसानियत की तलाश में इन्सां हो गया हूँ मैं ।
इंसानियत की तलाश में इन्सां हो गया हूँ मैं .
जब तक मैं बच्चा था, शायद तब तक ही मैं अच्छा था .
बचपन में न तो किसी से कोई भेदभाव और न ही कोई नीच-ऊँच .
पर अब तो हर इन्सां की है अपनी ही फितरत,
हर कोई चाहता है के वो जाए अपनों से ही थोड़ी ऊंचाई पर पहुँच .
अपने बचपन पीछे छोड़ता हुआ अब बड़ा हो गया हूँ मैं,
इंसानियत की तलाश में इन्सां हो गया हूँ मैं .
अब तो हर घर में चल रही महाभारत है,
हर कोई कर रहा दुर्योधन का ही स्वागत है .
सुग्रीव और हनुमान ने तो अब पैदा होना ही है बंद कर दिया,
क्योंकि राम मिलते नहीं यहाँ,
आज तो हर जगह रावण की ही आवभगत है.
धर्म के नाम पर इन्सां को बांटने वाला धर्मात्मा हो गया हूँ मैं,
इंसानियत की तलाश में इन्सां हो गया हूँ मैं .
धन के लालच ने मुझको है अँधा कर दिया,
क्योंकि आज मैंने अपनों का ही है सौदा कर लिया.
आज हर घर में है हो रहा , द्रौपदी का चीर-हरण,
श्री कृष्ण को भी आज अपने भक्तों पर है आ रही बहुत शरम.
दुनिया की नज़र में बहुत बड़ा सौदागर हो गया हूँ मैं,
इंसानियत की तलाश में इन्सां हो गया हूँ मैं .
जो मैं खुद न कर सका, वही मैंने अपने प्रवचनों में मैंने औरों को करने को कहा,
अपना ईमान बेचकर मैं, अमीरों की सुनता रहा और बस करता रहा.
जगन्नाथ की संतान होते हुए भी, एक इन्सां के हाथों की कठपुतली हो गया हूँ मैं,
इंसानियत की तलाश में इन्सां हो गया हूँ मैं .
जाने क्या था और क्या हो गया हूँ मैं...?
अपनों के लिए पराया और गैरों के लिए और भी गैर हो गया हूँ मैं.
आज तो लगता है के बस अपना ही बन के रह गया हूँ मैं.
इंसानियत की तलाश में इन्सां हो गया हूँ मैं ।
By -
Maahi
1st Oct. 2008
1:20 am
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