इश्क़ की गुहार, किस से करें
कहो तो प्यार, किस से करें..?
वो किस्से कहानियों में बीती रातें
मान लिया खुद को किसी का प्यार
अब ये इज़हार
किस से करें..?
मैं हर वक़्त तेरी दहलीज़ पे
बैठा ये सोचता हूँ
के अब दीदार की दरकार
किस से करें..?
वो सूनी सीढ़ियों पर
सूखते दरख़्तों की कंपन
हवाओं में बिखरा है प्यार
किस से करें..?
इश्क़ मुकम्मल नहीं
ज़िन्दगी बेवफ़ा नहीं
जो तू रूठ गया अब की बार
तो बोल न माही!
ये इज़हार - ओ - इक़रार
किस से करें..?
महेश "माही"
15/2/18
सुन्दर!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विश्वमोहन जी :)
जवाब देंहटाएंवाह!!लाजवाब।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शुभा जी :) आभार
हटाएंWah, Such a wonderful line, behad umda, publish your book with
जवाब देंहटाएंOnline Book Publisher India
धन्यवाद टीम बुक बज़ुका
हटाएंफिलहाल तो बुक पब्लिश के लिए सोचा नहीं है.. आभार आपका।
सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मीना जी
हटाएंसुंंदर रचना..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद पम्मी जी
हटाएंआभार ध्रुव जी आपका, जो आपने अपने ब्लॉग में मेरी रचना को स्थान दिया 😊
जवाब देंहटाएंवाह ! लाजवाब !! बहुत खूब आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत खूब