बुधवार, 4 जून 2014

यकीन...

तू ज़िंदगी भर बस मुझे ही चाहेगा माही!
ये यकीन, तू ने मुझे हर ख़्वाब में दिलाया है।

जाने कितनी कवितायें, 
ग़ज़ल, 
शेरों-शायरियाँ
लिखने के बाद ही 
मैंने तुझे पाया है।

दूरियाँ, 
रिश्तों पे कभी भारी पड़ भी गई तो क्या ?
तू तो बस मेरा,
हाँ!
बस मेरा सरमाया है।

रब जाने के क्या हकीकत होगी,
तेरी – मेरी कहानी की ?
मैं रहूँ, न रहूँ, पर तेरे दिल में रहूँगा सदा,
ये यकीन, तू ने ही मुझे दिलाया है।

किसी अधूरी कहानी से
ये अल्फ़ाज़ मेरे
ये कहानी करेंगे बयां,
के तू ने ही जीता है माही!
और तू ने ही मुझे हराया है।

- महेश बारमाटे “माही”

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