शनिवार, 30 मार्च 2013

आज की नारी... (Today's Modern Girls)


दोस्तों !
आज जो कविता मैं पेश करने जा रहा हूँ, वह केवल एक व्यंग्य मात्र है, कृपया मेरी रचना को अन्यथा न लें... और अगर आपको इसे पढ़ने के बाद बुरा लगे तो मुझे छोटा भाई समझ के माफ कर देवें । :)


न दिखे माथे पे मेरे
ये दाग तेरे मेरे रिश्ते का अब
देख इसे मैंने बालों से छुपा लिया है...

तेरे प्यार की निशानी
बहुत भारी है दिलबर !
आज मंगलसूत्र को भी मैंने
एक मामूली नेकलेस बना लिया है...

के वो तो थी सारी पुरानी बातें
आज देखने दिखाने का जमाना है
मुझे भी पहचान बनानी है अपनी
के घूँघट में अब किसे अपना चेहरा छुपाना है ?

नज़रें और नियत मेरी खराब कभी न थी
तो तुमने क्यूँ मेरे दामन को मैला माना
वो तो दोष सारी दुनिया का है
जिसने मुझे हमेशा कुँवारी जाना...

मैं तो जवां ओ हसीन हूँ हर दम
कोई मेरी जवानी पे मर गया
तो मेरी क्या खता ?
साड़ी पहनना बोरिंग हो गया है,
ये तो तुमको भी है पता...

तुम बदल गए हो अब तो
के शायद अब मैं तुम्हें भाती नहीं
सैलरी भी कम सी है तुम्हारी
जाओ अब मैं भी शर्माती नहीं...

मैं आज की नारी हूँ जानम !
मेरा अब कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है,
कानून के हथियार हैं बहुत मेरे पास आज तो
जो तुम्हें भी सजा दिला सकता है...

तुम्हारे माता - पिता को अब तुम
मेरे मम्मी पापा न बनाओ
बहुत बूढ़े हो गए हैं वो अब तो
उनको तुम वृद्धाश्रम छोड़ आओ

बहुत थक गयी हूँ जानू !
थोड़ा पैर तो दबा दो,
आज खाना बनाने का मूड नहीं मेरा
प्लीज आज खाना, तुम बना दो ।

मैं तो हूँ आज की लड़की माही !
मुझे दबाने की तुम सोचना नहीं
तुम्हें छोड़ के दूजा ब्याह रचा लूँगी
पर
मेरी किसी सौत का सपना भी तुम देखना नहीं...

- महेश बारमाटे "माही" 

(ये कविता बस एक व्यंग्य है, कृपया दिल पे न लें।)
(image courtesy : thehindu.com, yahoo.com, gstatic.com)

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