दोस्तों ! इस साल मैं होली अपने शहर में नहीं मना रहा, इसीलिए आज मैं अपने उन दोस्तों को बहुत याद कर रहा हूँ, जिनके संग हमेशा मैं होली खेला करता था। आज मेरी ये कविता, मेरे उन्हीं दोस्तों के नाम -
इस होली तुम नहीं हो साथ मेरे
जैसे हमेशा हम हुआ करते थे...
ले हाथों में रंगो-गुलाल
एक दूजे के संग हम फाग खेला करते थे...
वो जो निकलती थी सुबह से हमारी टोली
तो शाम तक बस हम होली खेला करते थे...
पर इस दफा
किस्मत ही शायद
हो गई थोड़ी सी बेवफा...
याद आ रहा है वो सब
जो हम संग किया करते थे...
आज बस एक याद बन के
रह गई है वो दोस्तों की टोली...
अब बस कमरे में हो के बंद
हम यादों में ही खेलते हैं होली...
बस उन्ही दिनों की याद में माही !
लगा के यूँ खुद ही को रंगो - गुलाल
हम रोते हैं
जिन में तुम संग हम
हंसी खुशी खोया करते थे।
- महेश बारमाटे "माही"
26 मार्च 2013
बहुत उम्दा सराहनीय रचना,पर होली में ये उदासी कैसी,,,, ,,
जवाब देंहटाएंहोली का पर्व आपको शुभ और मंगलमय हो!
Recent post : होली में.
धन्यवाद धीरेन्द्र जी !
हटाएंहोली अगर अपनों के साथ मनाई जाये तो खुशी होती है,
पर इस बार, होली में न तो मेरा कोई अपना था और न ही कोई पराया...
.बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति आपको होली की हार्दिक शुभकामनायें होली की शुभकामनायें तभी जब होली ऐसे मनाएं .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MAN
जवाब देंहटाएंशालिनी जी आपको भी होली की हार्दिक शुभ कामनाएँ :)
हटाएंहोली के अवसर पर ढेरों शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंशाह नवाज़ जी सबसे पहले आपको भी होली की शुभकामनाएँ... और बहुत दिनों बाद आप मेरे ब्लॉग पे आए उसके लिए शुक्रिया :)
हटाएंbahut khub
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनु जी :)
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