सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

वो तन्हा सर्द रातें...

तन्हा सर्द रातें,
बस कटती हैं
यूँ ही 
कर कर के खुद से ही बातें।

वो कहती है के 
तुम मुझको क्यों याद नहीं करते ?
पर कैसे बताऊँ अब उसे मैं के 
वो कौन सा पल है 
जब खुद से उसकी बात नहीं करते ...

वो रूठ गई है मुझसे 
बिना  मेरी गलती बताए ...
आखिर जाने किस तरह जी रही होगी वो 
बिना मुझको सताए ?

मुझे मालूम है 
के उसे मेरी आदत है,
वो मेरी ज़रूरत नहीं शायद
पर वो ही मेरी चाहत है ...

जाने कितने ख्वाब 
टटोलता मैं माही !
तेरे अक्स का आज भी पीछा कर रहा हूँ।
तुम हो या नहीं 
इसका मुझे पता नहीं 
पर आज भी इन सर्द रातों में मैं 
तन्हाई के संग 
बस मर रहा हूँ।

- महेश बारमाटे "माही"

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर कविता ....
    कभी समय मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी पधारें ....
    धन्यवाद

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    1. धन्यवाद शिव कुमार जी...
      बहुत जल्द आपके ब्लॉग में भी पढ़ारुंगा मैं...

      हटाएं
  2. जाने कितने ख्वाब
    टटोलता मैं माही !
    तेरे अक्स का आज भी पीछा कर रहा हूँ।
    तुम हो या नहीं
    इसका मुझे पता नहीं ,,,,

    बहुत शानदार अभिव्यक्ति सुंदर रचना ,,,
    आपके ब्लॉग को फालो कर लिया हूँ आप भी फालो करे मुझे हार्दिक खुशी होगी,,,

    RECENT POST बदनसीबी,

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह कितना सुन्दर लिखा है आपने, कितनी सादगी, कितना प्यार भरा जवाब नहीं इस रचना का........ बहुत खूबसूरत.......
    आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)

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    1. संजय जी बहुत डीनो बाद आपका आना हुआ... यही हमको बहुत पसंद आया...
      आज बहुत दिनों बाद आप आए और मेरे ब्लॉग को ही पढ़ा... मेरा सौभाग्य है...
      आपके आगमन पर आपका टहे दिल से धन्यवाद करता हूँ...

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