नादान थी वो जाने कैसी...
के अपने हर पल में खुद को संग मेरे देखना चाहती थी...
वो जानती थी के ये पल कभी ठहरता नहीं,
और फिर भी
मुझे वक़्त के हाथों से मांगना चाहती थी...
एक ख्वाब उसने भी देखा था शायद,
वक़्त की दीवार में वो भी कुछ कुरेदना चाहती थी...
वो जो भी थी मुझे पुकारती थी कह के माही!
शायद अपना नाम मेरे नाम के संग जोड़ना चाहती थी...
- महेश बारमाटे "माही"
24 जनवरी 2013
बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति अफज़ल गुरु आतंकवादी था कश्मीरी या कोई और नहीं ..... आप भी जाने संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करें कैग
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति ...बधाई
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