दिल तोड़ कर मेरा, कहते हो -
कहीं... दर्द तो नहीं हुआ ?
मेरे ज़ख्मों पर छिड़क कर नमक, कहते हो -
कहीं... दर्द तो नहीं हुआ ?
इश्क को मेरे मार कर ठोकर, कहते हो -
कहीं... दर्द तो नहीं हुआ ?
जिम्मेदार मेरी इस हालत का बनकर, कहते हो -
कहीं... दर्द तो नहीं हुआ ?
मेरे दिल के टुकड़ों पर रख कर कदम, कहते हो -
कहीं... दर्द तो नहीं हुआ ?
अब तुम्हे क्या कहूँ मैं,
के इस दर्द में भी एक अलग मज़ा है...
मिले ख़ुशी तुम्हे और गम मुझे,
शायद मेरे खुदा की यही रज़ा है...
फिर भी अगर, मिले कभी खुदा तो,
पूछूँगा मैं उनसे,
के
देखकर मेरी ऐसी हालत,
कहीं... दर्द तो नहीं हुआ ?
बहुत दर्द हुया जी। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया अभिव्यक्ति .....
जवाब देंहटाएंjust wonderful and the last line... very touching...!! just WOW!!!
जवाब देंहटाएंgood hai bhai sahab excellent.........
जवाब देंहटाएंall the best for new post......
बहुत बेहतरीन!
जवाब देंहटाएंdrad huva re mahhhhhhhhhhhiiiiiiiiiiiiiiii
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...बधाई
जवाब देंहटाएंआज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ ,आकर अच्छा लगा .कभी समय मिले तो http://shiva12877.blogspot.com ब्लॉग पर अपनी एक नज़र डालें .
फोलोवर बनकर उत्साह बढ़ाएं .. धन्यवाद् .