मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

कोशिश

कोशिश

किसी को याद करने की कोशिश में लगा हूँ मैं ,
पर वो कौन है ? ये भी भूल गया हूँ मैं ।

उसी की चाह में, दर दर भटक रहा हूँ मैं,
पर उसे पाने में कहाँ अटक रहा हूँ मैं ।

अब उसे याद करने में कोई तो करे मेरी मदद,
क्योंकि उसे याद करते जमाना हो गया एक अदद ।

अब मुझे उसकी कोई तो निशानी दे दो,
उसे याद करते - करते बूढा हो गया हूँ मैं, अब तो कोई मेरी जवानी दे दो ।

फिर भी मेरी तरफ से कोशिश जारी है,
मदद की है मैंने बहुत अपनी, अब तुम्हारी बारी है।

दुआ करो की वो मुझे याद आ जाए,
आज नहीं तो कल आ जाए ।

गर कभी याद आया मुझे, तो मैं तुम्हे जरूर बताऊँगा,
और कभी मिल सका उससे, तो मैं तुम्हे भी मिलवाऊँगा ।



महेश बारमाटे
6 May 2008
11:30 am

Kashmakash

कश्मकश


आज बड़ी कश्मकश में हूँ मैं, क्या करूं कुछ समझ में नहीं है आता ?
अपनी ख़ुशी का इजहार करूं या तुझसे रूठ जाऊं, कोई क्यों नहीं है मुझको ये समझाता ?

आज जिसकी मुझे उम्मीद न थी, तुमने है कह दी मुझसे वह बात
शायद जिसे सुनना चाहता था कभी दिल मेरा, पर न जाने क्यों नहीं दे रहा ये आज मेरा साथ ?

फिर भी ख़ुशी बहुत हुई,जो तेरे मुख पर आ ही गयी तेरे दिल की बात,
अब सोच रहा हूँ कैसे कटेगी,आज की ये ये तन्हा अँधेरी रात?

तेरी उस बात ने मुझको और भी तन्हा है कर दिया,
पहले तो मैं सिर्फ तन्हा था, अब तनहाइयों ने भी मुझको सौतेला कर दिया.

फिर भी अच्छा ही हुआ
जो तेरे दिल की बात जुबाँ पर आ ही गयी,
जिनके मन में तेरे लिए ग़लतफ़हमी थी,
उनके चेहरों पर अब कुछ उदासी है छा गयी.

तूने जो कुछ कहा मैंने उसका बुरा न माना.
क्योंकि मैंने तुझको कभी अपना दिलबर न था माना.

मेरे दिल में, जिस जगह पर लोगो ने तुझे देखना था चाहा, वो जगह आज भी खाली है.
और ये दिल तेरा नहीं बल्कि, इस दिल के बाग़ का कोई और ही माली है.

गर और कोई कसर बाकी हो, तो इस दिल पर तू और कर वार,
जो किसी के हुस्न की आग में पिघला नहीं, वो फौलाद क्या टूटेगा, अब चाहे ईट हो या तलवार.

पर ऐ बेखबर! कहीं ऐसा न हो, के मुझ पर करते - करते वार,
कहीं हो न जाए तुझको मुझसे प्यार.


तब तुझे उस प्यार के बदले, मिलेगी सिर्फ..........
नफरत भरी तलवार.




महेश बारमाटे
13 Apr 2008
2:15 am

सोमवार, 28 दिसंबर 2009

सिर्फ मौत चाहता हूँ मैं.....

आज मैं सिर्फ मौत चाहता हूँ............,
क्योंकि तेरे बिन अब मैं जी नहीं सकता,
जानता हूँ के जो मैं चाहता हूँ, वह मुझे मिल नहीं सकता,
इसलिए अब मैं सिर्फ मौत चाहता हूँ ....

घुट - घुट के जीना मुझे पसंद नहीं,
और किसी की याद में जिंदगी गुजार देना मेरी फितरत नहीं
तेरे मुंह से "न" मैं सुन नहीं सकता, और प्यार में हार कर मैं जी नहीं सकता,
इसलिए अब मैं सिर्फ मौत चाहता हूँ....

चाहता हूँ के मेरी मौत तेरी ही बाहों में ही हो,
मिले थे पहली बार हम जहाँ, मेरी मौत बस उन्हीं राहों में ही हो
पर मरने से पहले मैं तुझे बता देना चाहता हूँ...,
के मैं मौत से ज्यादा तुझे चाहता हूँ .... ,
पर अब मैं सिर्फ मौत चाहता हूँ ...

ये एक राज़ ही रहेगा..., के आखिर क्या कारण है,
आखिर मरने का ही क्यों मेरा मन है ?
बस उसी कारण के लिए मैं तुझे तडपाना चाहता हूँ...,
और अपने लिए मैं सिर्फ मौत चाहता हूँ ....

बस मौत....
चाहता हूँ मैं......
सिर्फ और सिर्फ......
मौत चाहता हूँ मैं .....


महेश बारमाटे
27th March 2008, 1:00 am

Aadhunik Insaan

आधुनिक इंसान...


जाने क्या से क्या हो गया हूँ मैं....,
इंसानियत की तलाश में इन्सां हो गया हूँ मैं .

जब तक मैं बच्चा था, शायद तब तक ही मैं अच्छा था .
बचपन में न तो किसी से कोई भेदभाव और न ही कोई नीच-ऊँच .
पर अब तो हर इन्सां की है अपनी ही फितरत,
हर कोई चाहता है के वो जाए अपनों से ही थोड़ी ऊंचाई पर पहुँच .
अपने बचपन पीछे छोड़ता हुआ अब बड़ा हो गया हूँ मैं,
इंसानियत की तलाश में इन्सां हो गया हूँ मैं .

अब तो हर घर में चल रही महाभारत है,
हर कोई कर रहा दुर्योधन का ही स्वागत है .
सुग्रीव और हनुमान ने तो अब पैदा होना ही है बंद कर दिया,
क्योंकि राम मिलते नहीं यहाँ,
आज तो हर जगह रावण की ही आवभगत है.
धर्म के नाम पर इन्सां को बांटने वाला धर्मात्मा हो गया हूँ मैं,
इंसानियत की तलाश में इन्सां हो गया हूँ मैं .

धन के लालच ने मुझको है अँधा कर दिया,
क्योंकि आज मैंने अपनों का ही है सौदा कर लिया.
आज हर घर में है हो रहा , द्रौपदी का चीर-हरण,
श्री कृष्ण को भी आज अपने भक्तों पर है आ रही बहुत शरम.
दुनिया की नज़र में बहुत बड़ा सौदागर हो गया हूँ मैं,
इंसानियत की तलाश में इन्सां हो गया हूँ मैं .

जो मैं खुद न कर सका, वही मैंने अपने प्रवचनों में मैंने औरों को करने को कहा,
अपना ईमान बेचकर मैं, अमीरों की सुनता रहा और बस करता रहा.
जगन्नाथ की संतान होते हुए भी, एक इन्सां के हाथों की कठपुतली हो गया हूँ मैं,
इंसानियत की तलाश में इन्सां हो गया हूँ मैं .

जाने क्या था और क्या हो गया हूँ मैं...?
अपनों के लिए पराया और गैरों के लिए और भी गैर हो गया हूँ मैं.
आज तो लगता है के बस अपना ही बन के रह गया हूँ मैं.
इंसानियत की तलाश में इन्सां हो गया हूँ मैं ।

By -
Maahi
1st Oct. 2008
1:20 am

रविवार, 27 दिसंबर 2009

Intzar


इंतज़ार



हर वक़्त, हर पल तेरा ख्याल आता रहा,
जब तक जिंदा रहा, लबों पे बस तेरा ही नाम आता रहा।


मरने के बाद भी कब्र पर बैठा तेरा ही इंतज़ार मैं करता रहा,
सब आए आखिरी दीदार को मेरे, बस एक तेरे दीदार को मैं तरसता रहा।


खुदा ने भी आकर खुद पूछा, बेटा ! तू मर कर भी मुझसे मिलने को न आया,
तो बस यही कहा,
ऐ खुदा! जिसकी खातिर भेजा था तूने मुझको, बस उसी का इंतज़ार अब तक मैं करता रहा।


खुदा ने फिर कहा, वो न आएगी कभी, तू चल मैं तुझे जन्नत की सैर करा दूं,
पर तेरे बगैर जन्नत तो क्या, दोजख भी मेरे लिए तरसता रहा।


जन्नत की हूर ने भी, बड़े प्यार से पुकारा मुझे,
पर तब भी तुझसे ही प्यार मैं करता रहा।


थक हार कर खुदा ने भी नए जन्म का ऐलान कर दिया मेरे,
पर मैं तो हर जन्म में, बस तेरे प्यार के लिए मरता रहा।


भेज दिए खुदा ने फिर फरिस्ते, तुझे खोजने के वास्ते,
और मैं उनके बगैर ही, हर जहां में तेरी तलाश करता रहा।


खुदा के हर दर पे, तुझसे मिलने की फ़रियाद मैं करता रहा,
चाँद तारों से तेरी ही बात मैं करता रहा।


चाँद तारों ने भी मदद की मेरी, तुझे तलाशने में,
पर लगता है जैसे मेरी हर कोशिश में, तुझसे ही दूर मैं जाता रहा।


पर तब भी हर कोशिश में मुझे, तेरा ही ख्याल आता रहा।
और जब तक मैं जिन्दा रहा, तेरे ही नगमे लिखता और सबको सुनाता रहा।


आज भूल गया है ये जहां मुझको, पर तुझे भूल न पाया हूँ।
जो लिखा था पहली बार देख के तुझको, आज तक वही गीत मैं गुनगुनाता रहा।


By
Maahi...
24th June 2009
3:53pm