तमन्ना थी के हम फिर मिलें,
तमन्ना थी के कुछ पल हम फिर साथ चलें...
तमन्ना थी के तेरी ज़ुल्फों की छाँव में, एक लम्हा गुज़ार दूँ...
और उस एक लम्हे में तुझे, खुद से भी ज्यादा प्यार दूँ...
तमन्ना थी के तेरी हर एक अदा को, अपनी कविताओं में भर दूँ...
गर तू कहे तो तेरी माँग में, चाँद - तारों से भर दूँ...
तमन्ना थी के तेरी हँसी ही मेरी, सुबहो - शाम हो,
और तेरी पलकों की छाँव में अपनी महफिले - आम हो...
तमन्ना थी के हर रात मैं तेरे स्वप्नलोक का राही बनूँ...
ज़िन्दगी के हर मोड़ पे मैं ही तेरा हमसाया और मैं ही तेरा माही बनूँ...
तमन्ना थी के मेरी हर ख्वाहिश की तुमसे ही शुरुआत हो...
जहाँ भी देखूँ तो बस, मेरी तुमसे ही मुलाकात हो...
तमन्ना थी के तेरी खूबसूरती मेरी हर ग़ज़ल में शामिल हो,
और मेरी हर नज़्म बस तुझे ख़ुशी देने के काबिल हो...
तमन्ना थी के तेरा - मेरा प्यार हो इतना पवित्र,
के वो इस जहाने - इश्क के लिए ताज महल से कम न हो...
गर मिले कभी कोई गम मुझको,
लेकिन तेरी आँखें नम न हो...
तमन्ना थी के तेरी आँखों में डूब कर,
एक नया ज़हाँ बसाना था...
समुन्दरे - इश्क की गहराई से तेरे लिए,
कोई अनमोल मोती मुझे लाना था...
पर किस्मत को शायद,
कुछ और ही मंज़ूर था,
जिसको समझा मैंने दिल के सबसे करीब,
वो ही दिल - ही - दिल में मुझसे दूर था...
जाने क्यों बहुत करीब थे तब हम,
जब दरमियाँ हमारे बहुत दूरी थी...
वो दिन भी बड़े खुश - गवार थे,
और हमारी न ही कोई मजबूरी थी...
आज मैं बस तेरी ही एक तमन्ना के लिए,
अपनी हर ख़ुशी लुटा बैठा हूँ...
और तेरे प्यार को भी अपने दिल से,
मिटा बैठा हूँ मैं...
अपनी तमन्नाओं का सागर,
इस कदर पी लिया है आज मैंने,
के ऐसा लग रहा है जैसे तेरी याद में,
एक युग जी लिया है आज मैंने...
पर आज इस सागर में फिर,
एक लहर बहुत ऊँची उठी है,
पर जल्द ही टूट गयी वो प्यासी लहर,
जब याद आया के तू अब भी मुझसे रूठी है...
तमन्ना थी के आज तुझे अपनी आप बीती सुनाऊँ,
और अपनी तमन्नाओं में आखिरी बार डूब जाऊँ...
डूब जाऊँ...
कहीं खो जाऊँ.... और
कभी वापस ना आऊँ...
"रो रहा है हर पल, मेरी तमन्नाओं का ये सागर...
सूखने का इसे डर नहीं, बस तेरे रूठ जाने का गम है...
आ के तू एक बार तो देख इसे, ऐ मेरी तमन्ना !
वो दरिया जो कभी बहा था, इन आँखों से,
ज़मीं आज भी उसकी नम है..."
माही (महेश बारमाटे)
27th Feb 2010