बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

कहीं... दर्द तो नहीं हुआ ?


दिल तोड़ कर मेरा, कहते हो -
 कहीं... दर्द तो नहीं हुआ ?

मेरे ज़ख्मों पर छिड़क कर नमक, कहते हो - 
 कहीं... दर्द तो नहीं हुआ ?

इश्क को मेरे मार कर ठोकर, कहते हो - 
 कहीं... दर्द तो नहीं हुआ ?

जिम्मेदार मेरी इस हालत का बनकर, कहते हो - 
 कहीं... दर्द तो नहीं हुआ ?

मेरे दिल के टुकड़ों पर रख कर कदम, कहते हो - 
 कहीं... दर्द तो नहीं हुआ ?
                                                      अब तुम्हे क्या कहूँ मैं,
                                                      के इस दर्द में भी एक अलग मज़ा है...
                                                      मिले ख़ुशी तुम्हे और गम मुझे,
                                                      शायद मेरे खुदा की यही रज़ा है...
फिर भी अगर, मिले कभी खुदा तो,
पूछूँगा मैं उनसे, 
के 
देखकर मेरी ऐसी हालत, 
 कहीं...  दर्द  तो  नहीं  हुआ ?

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत दर्द हुया जी। शुभकामनायें।

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  2. just wonderful and the last line... very touching...!! just WOW!!!

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  3. good hai bhai sahab excellent.........

    all the best for new post......

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  4. drad huva re mahhhhhhhhhhhiiiiiiiiiiiiiiii

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  5. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...बधाई
    आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ ,आकर अच्छा लगा .कभी समय मिले तो http://shiva12877.blogspot.com ब्लॉग पर अपनी एक नज़र डालें .
    फोलोवर बनकर उत्साह बढ़ाएं .. धन्यवाद् .

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