तुम तो गाड़ी से आ रहे थे,
और हम पैदल ही जा रहे थे...
जानूँ न क्यों तुमने,
हमको था फिर यूँ ठोका
के अब तो हमे भी दिन में
तारे नज़र आ रहे थे।
सामने की गाड़ी ने भी
ब्रेक से था खुद को रोका
पर वो तो था दिमाग से पागल,
ब्रेक की जगह वो तो,
एक्सिलीरेटर दबा रहे थे...
हमारी तो गलती थी इतनी,
के हम तो रोड किनारे से जा रहे थे,
और पीछे की गाड़ी में साहब,
मेमसाब से इश्क़ फ़रमा रहे थे।
अब तो टूटी थी हड्डी
और हम दर्द से कराह रहे थे
और देखने वाले भी हमको
मंद - मंद मुस्कुरा रहे थे।
सायरन सुना जब एंबुलेंस का
तो लगा कि अब तो बच ही गए,
पर क्या पता था के अब तो
यमदूत भी सायरन वाले वाहन में आ रहे थे...
मरते - मरते हम तो
जाने क्या - क्या गुनगुना रहे थे
के "मर जाओ तुम कमीनों
जो रात का मज़ा,
दिन - दहाड़े गाड़ी में लिए जा रहे थे... "
- इंजी॰ महेश बारमाटे "माही"