आज बहुत दिनों बाद मेरी कलम से कुछ शब्द दिल की आवाज को बयान करते मिले हैं... उम्मीद है आपको पसंद आएगी...।
वो कुछ ख़ास है...
वो दूर है,
और वो पास भी...
वो कुछ नहीं है,
पर वो ख़ास भी...
सोचता हूँ उसे,
और मानता हूँ उसे...
वो अगले कई जन्मों की तलाश है,
और वो एक प्यास भी...
रोता हूँ उसके लिए,
और हँसता हूँ मैं संग उसके...
उससे इन्कार है मुझे
और उससे प्यार भी...
वो है मेरी ज़िंदगी का हर एक लम्हा,
फिर भी हूँ मैं अब तक तन्हा...
उसकी राहे-मंजिल हूँ मैं,
और वो मेरा साहिल भी...।
हूँ बेवफा मैं, बस उसके लिए...
और निभाई है वफा, शायद बस खुद के लिए...
तू मेरी जीत का आगाज है माही !
और दिल की हार का साज भी...
तू दूर है...
और पास भी...
तू कुछ नहीं....
पर ख़ास भी...
- महेश बारमाटे "माही"
28 सितंबर 2012