मेरी लिखावटों के पीछे
दरार है
मेरी लिखावटों के पीछे
दरार है
हाथ काँपते हैं मेरे
तेरा नाम लिखने से
हाँ! यही तो प्यार है।
तुझसे छुपाया नहीं जाता
मुझसे बताया नहीं जाता
आँख बंद करके भी हो जाये
ये कैसा दीदार है..?
हाँ! यही तो प्यार है।
दर-ओ-दीवार-ए-दिल पे तेरी तस्वीर
जो लगा रखी है
इल्तिज़ा लोगों की आती है
कि एक बार तो पर्दा उठे।
मैं न कर देता हूँ सबसे
तुझसे जो मेरा इक़रार है।
हाँ! यही तो प्यार है।
किताबों के बीच में
गुलाबों सा सजाया है तुझे
करके सजदा हजारों दफा
अपना बनाया है तुझे
किताबी सा नहीं माही!
मेरी रूह का ये इज़हार है
हाँ! मुझे तुमसे प्यार है।
- महेश "माही"