सोमवार, 11 जून 2018
कुछ तो है... (Kuch toh hai...)
बुधवार, 9 मई 2018
मेरे गाँव वाले घर में..
छोटे - छोटे दरवाजे
मोटी - मोटी दीवारें थीं
मेरे गाँव वाले घर में
न किसी के दिल में दरारें थीं।
बड़े छोटे से कमरे में
पूरा परिवार रहता था
सुख - दुख के सारे मौसम
हर कोई संग सहता था।
पुरानी एक तश्वीर टंगी थी
पुरखों वाले कोने में
डर का कोई सवाल नहीं था
घुप्प अँधेरों में सोने में।
नीम की छाँव में बीते शामें
दादी - नानी की कहानियों में सदियों के कारनामे
बीत जाता था पूरा साल
पहन के चंद फटे पायजामें।
छोटी सी खुशी में भी
पूरा गाँव खुश होता था
ग़म की अगर खबर मिले तो
पूरा गाँव संग हमारे रोता था।
आधुनिकता की भागदौड़ में
वो छोटा दर-ओ-दरवाजा टूट गया
जानें कहाँ गया वो जीवन माही!
लगे जैसे भगवान हमसे रुठ गया..।
- महेश बारमाटे "माही"
7 मई 2018
शुक्रवार, 27 अप्रैल 2018
बीती रात..
रौशनी तो कम हो गई थी
पर आँखों के चराग
अब भी जल रहे थे
हम बीती रात
दिल मे लिए कई ख्वाब
अनजानी राहों में चल रहे थे।
इक आहट हुई
और ख्वाबों का मेहताब टूट गया
कुछ टुकड़े चुभे दिल की ज़मीं पे
कोई अरमां आँखों से रिसता हुआ रुठ गया।
अँधेरों में सोने की आदत नहीं थी
उजालों ने डरना सिखा दिया
वक़्त-ए-सफ़र भी क्या खूब गुजरा माही!
के फैसले की घड़ी में उसने तुझे मेरा दीवाना बना दिया..
महेश बारमाटे "माही"
27 apr 18
गुरुवार, 29 मार्च 2018
मौन..
एक "मौन" सी कहानी है
कुछ खामोशियाँ हैं मेरे जेहन में
जो चीखती हैं
बिन आवाज के..।
देखो!
आज कागज पे रख ही दिया मैंने
अपने अंदर के उस "मौन" को
के कहीं गुम न जाये
इसीलिए
शब्दों में पिरो के..।
पढ़ो!
आज तुम इस "मौन" को
के शायद ये शब्द भी छू लें
तुम्हारे दिल के तारों को..।
फिर देखना..
मेरी खामोशियों की
मूक ज़ुबाँ
कागजों पे बिखरे
शब्दों के मोती से
कैसे एक नया राग
तुम्हारे दिल के तारों से
निकलेगा संगीत बन के..
और फिर
खो जाओगे तुम
मेरे उसी "मौन" में
जो तुम्हें कल तक
पसंद भी न था माही..!
- महेश बारमाटे "माही"
29/03/18
शुक्रवार, 16 मार्च 2018
क्यों तुम्हें हमेशा...
हर पल तेरा चेहरा
मेरे जेहन के समंदर में उतराता रहता है..
और तेरा ख्याल
जैसे हो कोई चाँद
डूब के मुझमें
गोते खाता रहता है..
तुम लाख चाहो के मुझे भुला दो
पर ये जो इश्क़ है न मेरा
तेरे दिल की बगिया में गुल
खिलाता रहता है।
यकीन न हो
तो तुम ही बता दो
क्यों तुम्हे भी हर हमेशा
मेरा ही ख्याल
आता रहता है..?
कहो..?
क्यों तुम्हें हमेशा...
- महेश बारमाटे "माही"
शुक्रवार, 9 मार्च 2018
अंतहीन सी डोर
एक अंतहीन सी डोर है
क्या अदृश्य कोई छोर है..?
थामे हुए है मुझे और तुम्हें
मिलन की आस है
कैसी ये होड़ है..?
दूर हो के भी पास हैं
हमें एक दूजे का एहसास हैं
हरदम मिलन की आस है
कैसी ये प्यास है..?
चाहत और हकीक़त
में छोटा सा फर्क है
गर समझ गए तो जन्नत
वरना गर्द है।
जीवन की कश्ती मेरी
डूबे है अब हस्ती मेरी
न सोच के ये खेल है मुहब्बतों का
ये मुतालबा है हक़ का।
चाहूँ तुझे के पूरा कर
हर एक खाब तू अपनों का
मेरी चाहत का कोई मोल नहीं
पर सौदा न कर उनके सपनों का।
लिक्खा है तेरा मेरा मिलना आसमानों में
बस इंतज़ार ओ सब्र कर अरमानों में
मेरी ज़िन्दगी का भरोसा नहीं माही!
पर विश्वास है मुझे तेरे विश्वासों में।
महेश "माही"
8/3/18
10:33 am
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शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018
किस से करें..?
इश्क़ की गुहार, किस से करें
कहो तो प्यार, किस से करें..?
वो किस्से कहानियों में बीती रातें
मान लिया खुद को किसी का प्यार
अब ये इज़हार
किस से करें..?
मैं हर वक़्त तेरी दहलीज़ पे
बैठा ये सोचता हूँ
के अब दीदार की दरकार
किस से करें..?
वो सूनी सीढ़ियों पर
सूखते दरख़्तों की कंपन
हवाओं में बिखरा है प्यार
किस से करें..?
इश्क़ मुकम्मल नहीं
ज़िन्दगी बेवफ़ा नहीं
जो तू रूठ गया अब की बार
तो बोल न माही!
ये इज़हार - ओ - इक़रार
किस से करें..?
महेश "माही"
15/2/18
बुधवार, 3 जनवरी 2018
ताबीज़
तो तेरे दिल के पास हरदम होता।
कभी दुआ के लिए लबों पे होता
काश!
मैं तेरा ताबीज होता।
जब जब कुछ अच्छा या बुरा होता।
काश!
मैं तेरा ताबीज होता।
के मैं तेरे लिए बहुत अहम होता
काश!
मैं तेरा ताबीज होता।
मैं भी बस वहीं होता
काश!
मैं तेरा ताबीज होता।
तेरे लिए हर खतरे से लड़ता
काश!
मैं तेरा ताबीज होता।
और मैं बस बदले में दुआएं देता
काश!
मैं तेरा ताबीज होता।
तेरी हर बलाएँ सहता,
कभी उफ्फ भी न करता
के मैं तो तेरे गले में बंधा रहता।
मैं तेरा ताबीज होता।
3/01/18
5:23 pm