गुजरती रात को दिन का सलाम मालूम हुआ
हवा का झोंका कुछ यूं गुजरा
जैसे तुम्हारे दुपट्टे ने हो मुझे छुआ...।
लोग बात करते हैं तेरी
मेरे बहाने से
मैंने भी इन्कार न किया
कि तू ने मेरी धड़कनों को था छुआ..।
लो फिर आ गए
आँखों में आँसू
तुम्हें याद करते करते
और मुझे याद नहीं
वो कौन सा पल था
जब तुम्हें मुझसे
इश्क़ हुआ।
रोज रात तेरी कहानी
तैरती है आँखों के अँधियारे में
जुगनू से चमक उठी हँसी तेरी
लगे जैसे तेरे दिल में अब कुछ कुछ हुआ।
मेरे लिखे पे मत जाना
जाने क्या क्या लिख बैठता हूँ मैं
बस वो एहसास याद रखना
जब तेरे दिल को इन धड़कनों ने छुआ।
- महेश माही