एक "मौन" सी कहानी है
कुछ खामोशियाँ हैं मेरे जेहन में
जो चीखती हैं
बिन आवाज के..।
देखो!
आज कागज पे रख ही दिया मैंने
अपने अंदर के उस "मौन" को
के कहीं गुम न जाये
इसीलिए
शब्दों में पिरो के..।
पढ़ो!
आज तुम इस "मौन" को
के शायद ये शब्द भी छू लें
तुम्हारे दिल के तारों को..।
फिर देखना..
मेरी खामोशियों की
मूक ज़ुबाँ
कागजों पे बिखरे
शब्दों के मोती से
कैसे एक नया राग
तुम्हारे दिल के तारों से
निकलेगा संगीत बन के..
और फिर
खो जाओगे तुम
मेरे उसी "मौन" में
जो तुम्हें कल तक
पसंद भी न था माही..!
- महेश बारमाटे "माही"
29/03/18