रविवार, 11 अप्रैल 2010

मैं बदल गया...

मैं बदल गया...
मैं बदल गया उसे बदलने के लिए,
पर वो ही न बदला कभी, बस मेरे लिए...

मर गया मैं आज, उसकी ख़ुशी के लिए,
पर तब भी वो न आया मेरी, मय्यत के संग चलने के लिए...

हर ख़ुशी को उसके कदमों पे ला दिया,
उसके लिए खुद को एक कहानी बना दिया,
पर समय तक न निकाला कभी, मुझे पढने के लिए...

जिसने सिखाया था मुझे के "बदलाव ही जिंदगी है...",
आज वो ही मुझसे है कह रहा के
"चाहे लाख बदल जाना तुम, पर न बदलना कभी बस मेरे लिए..."

चार पल कि जिंदगानी के चारों पल, बिता दिए उसकी आशिकी के लिए,
और आज देखो,
दर पर खड़ा है वो मेरे,
मुझसे पाँचवा पल मांगने के लिए...

उसकी प्यास में भटकते रहे हम, इश्क के रेगिस्ताँ में,
और वो समझे, के हम निकले हैं बस, धूप सेंकने के लिए...

दिल निकाल के दे दिया हमने उन्हें,
और वो समझे के ये प्यार भरी चीज तो है बस खेलने के लिए...

मैं तो बस बदल गया...
उसकी ख़ुशी में अपनी ख़ुशी तलाश करने के लिए...
और उसे लगा के मैं बदल गया, बस एक खुदगर्ज़ इंसान बनने के लिए...

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Mahesh Barmate
17th March 2010
5:28 pm

मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

वो कौन था...?

वो कौन था...?
वो कौन था,
जो हर मुलाकात में रहा मौन था?

आज फिर हुई उससे मुलाकात ऐसी,
के लगा आज अमावस भी खिली हो चांदनी रात जैसी...

सोचा के लबों पे आज तो कोई बात आएगी,
और बातों - बातों में गुजर ये रात जाएगी...

पर जाने वो "क्या" और "कौन" था,
क्योंकि आज भी रहा वो पहले की तरह मौन था..?

हमें लगा के शायद वो, अँखियों से कर रहा था अपना अंदाज़े - बयाँ,
पर अँखियों में आज भी उसकी न था कुछ भी नया...

पलकें जो एक बार झुकाई तो कभी न उठाई होंगी उसने,
जैसे सदियों से किसी से नज़रें न मिलाई होंगी उसने...

ऐसा नहीं के उसकी रगों में न बह रहा खून था,
पर हर बार की तरह वो जाने क्यों रहा मौन था..?

लबों से कभी उसने कुछ भी न कहा,
पर धडकनों को शायद मेरी उसने था सुन ही लिया...

क्योंकि आज धडकनों में उसकी एक हलचल सी थी,
आज दिल में भी मेरे एक खलबल सी थी...

समझ न पाया मैं अब तक उसको, इन चाँद मुलाकातों में,
बातें जो उसने कही, उन निःशब्द बातों में...

क्योंकि वो आज भी मेरे लिए सिर्फ और सिर्फ "कौन" था...
अंतः मन की सुरीली आवाजों वाला, जाने वो क्यों मौन था...?

एक सवाल की तरह वो मेरे जेहन में उतर गया...
हर मुलाकात के बाद उसकी आवाज सुनने का मेरा हर सपना बिखर गया...

सुना है उसकी चहक से, महक उठता था कभी ये सारा आलम,
पर उसके लबों की थरथराहट से भी महरूम हैं आज हम...

अब तो उसकी शाने - ग़ज़ल पे कुछ भी लिखना, मुझे कम लगता है,
उसकी हर एक अदा जिंदगी देती है मुझको, पर उसका चुप रहना मुझे गम लगता है...

अब तो यही ख्वाहिश है के वो मौन न रहे,
आ के दे दे वो मेरे सारे सवालों के जवाब,
ताकि वो मेरे लिए कभी "क्या" और "कौन" न रहे...

फिर भी एक आखिरी सवाल है उठ रहा दिल में मेरे, के आखिर वो कौन था,
जो शायद सिर्फ मेरे लिए ही रहा हर वक़्त मौन था ?

... Mahesh Barmate
11th March 2010
9:15 am