जागता रहा रात भर
अपने गुनाहों को याद करता मैं
खुद से ही माफ़ी माँगता
और खुद को ही सजा देता मैं।
हर सजा के बाद
गुनाह खुद मुझसे पूछता
क्यों तूने मुझे किया
और फिर मुझसे रूठता।
न जवाब था
न शर्मिंदगी
जाने किस मोड़ पे आयी
आज ये ज़िन्दगी।
मैं जागता रहा
गुनहगार की तरह
सोती रही क़िस्मत
जाने किस जगह।
आ
अब न माफ़ कर
मुझे मेरे माही!
के सजा भी मेरी
गुनाह भी मेरा
मैं सफ़र-ए-दर्द का हूँ एक राही।
#महेश_बारमाटे_माही
21 Nov 2015
6:25 pm
अपने गुनाहों को याद करता मैं
खुद से ही माफ़ी माँगता
और खुद को ही सजा देता मैं।
हर सजा के बाद
गुनाह खुद मुझसे पूछता
क्यों तूने मुझे किया
और फिर मुझसे रूठता।
न जवाब था
न शर्मिंदगी
जाने किस मोड़ पे आयी
आज ये ज़िन्दगी।
मैं जागता रहा
गुनहगार की तरह
सोती रही क़िस्मत
जाने किस जगह।
आ
अब न माफ़ कर
मुझे मेरे माही!
के सजा भी मेरी
गुनाह भी मेरा
मैं सफ़र-ए-दर्द का हूँ एक राही।
#महेश_बारमाटे_माही
21 Nov 2015
6:25 pm