शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

ये मेरी किस्मत...


जिसे पाने की उम्मीद पे चला हूँ,
वो मंजिल तो कभी दिखाई ही नहीं देती। 
के हर रहगुज़र बन के मेरा हमसफर,
अक्सर मुझे यूं ही तन्हा छोड़ गया। 

पर फिर भी जाने किस उम्मीद में जी रहा हूँ,
के कभी तो मंज़िल को पा ही लूँगा। 
और वो भी फिर आएगा एक बार फिर पास मेरे,
जो पिछली दफ़ा मुझसे था मुंह मोड़ गया। 

आज आसमाँ से गिरी एक बूंद भी मुझको,
तूफाँ की तरह भिगो गई, 
लगा के जैसे मंद हवा का इक हल्का सा झोंका,
भी मुझे झँझोड़ गया। 

जाने कितने जतन किए होंगे मैंने, 
इन लबों को फिर खुशी देने के वास्ते...
पर किस्मत का हर ज़र्रा हर बार मेरा,
हर करम निचोड़ गया...। 

फिर भी आज बैठा हूँ मैं इसी आस मे,
के लगता है मंज़िल अब भी यहीं कहीं है मेरे पास में।
और कह रहा है कोई इस दिल से,
के एक नज़र फिर देख इधर ओ मेरे "माही"!
वो जाता "लम्हा" भी किस्मत का फिर एक नया, दरवाजा खोल गया। 

महेश बारमाटे "माही"
19 जुलाई 2011
4.32 pm

मंगलवार, 12 जुलाई 2011

वह, उसकी यादें... और... मैं...

उसे क्यों याद करूँ जो कभी मेरी थी ही नहीं...
ऐ खुदा ! बस एक इल्तिजा है मेरी 
के खुश रखना सदा उसे जिसने मुझे खुश होना सिखाया 
जिसने मेरे गीतों को अपने होंठों से था लगाया 
और जिसने मेरे दिल को एक बार फिर धड़कना था सिखाया...

आज वो जहाँ भी है, शायद खुश है
तो क्यों उसे अपनी मौजूदगी का एहसास दिलाऊं ?
ऐ चाँद ! जा तू उसे रातों को मीठी नींद में सुलाना...
ऐ फलक के तारों ! जाओ तुम उसका आँचल बन जाओ...

जाओ सारी खुशियाँ भर दो झोली में उसकी...
के मेरा जिक्र भी उसे छू न पाए...
मेरे अक्स की परछाई भी उसे याद न आये कभी...
के वो तो चली गई है बिना मुझसे कुछ कहे...
तो आखिर क्यों मैं उसे याद करूँ ?

और क्यों कहूं उसे आज मैं संगदिल 
जब दिल तो बस मैंने था उससे लगाया ?
उसके साथ बीते हर पल को अपनी आँखों में था बिठाया...
के शायद वही था मेरी ज़िन्दगी का सरमाया...

ऐ हवा जा उसके आँचल को सहला,
उसकी जुल्फों में कहीं खो जा
और बस इतना सा काम और कर,
के जब वो तनहा हो अगर...

तो मेरा नाम उसके कानों में जाके धीरे से कहना
देख के कहीं उसे चोट न लग जाये 
जरा प्यार से उसे अपनी बाहों में तुम लेना
और याद दिलाना के आज भी कोई है जो उसे याद करता है

कोई है जो आज भी उसकी तस्वीर को देख के गज़लें लिखा करता है...
आज भी वो मेरी कहानियों में शामिल सी दिखाई देती है...
आज भी कहानी के हर दृश्य में वो मेरी नायिका बन के इठलाती है
आज भी मैं उससे उतना ही प्यार करता हूँ 
और आज भी उसके दीदार का इंतज़ार करता हूँ...

वो मेरी ज़िन्दगी का हर लम्हा चुरा के ले गई
ऐ वक्त ! जरा उसे मेरी कमी महसूस मत करा 
के फूलों सी नाजुक है वो 
कहीं बिखर न जाए 
उसका ख्याल रख 
उसे मेरे दिल में बसा 

के याद नहीं करना उसे अब 
जिसे पाने की तमन्ना आज भी है 
वो दूर ही सही पर मुझे 
ऐ मेरे "माही"!
तुझसे मुहब्बत आज भी है ...

१२ जुलाई २०११ 
4:26 am

शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

मैं तन्हा ही रहा...

मैं हर पल रहा, हर महफ़िल में उनकी,
फिर भी न जाने क्यों, हर दम मैं तन्हा ही रहा...?

दिल से मिल के मैंने,
दी हर किसी को इस दिल में पनाह,
फिर भी जाने क्यों हर दम,
मैं बेपनाह ही रहा?

हर कश्ती का मुसाफिर मुझसे,
रास्ता पूछता गया
और खुद समंदर में होके भी मैं,
साहिल की तलाश में प्यासा ही रहा...

किसका रास्ता देखूँ अब मैं, 
के हर एक मुसाफिर है यूँ निकल गया,
के दिल का ज़हां,
मेले में भी हरदम वीराना ही रहा...

किसी ने कहा था मुझसे,
के ये दौर यूँ ही गुजर जायेगा...
और बीते दिन याद करता मैं.
बीती रात बस रोता ही रहा...

देखो कैसे भूल बैठा है, मेरा "माही"!
के मैं भी कभी संग था उसके
और दिल में हर - पल,
उसकी मुहब्बत का आँसू हरदम,
बस चमकता ही रहा...

महेश बारमाटे "माही"
८ मई २०११