बुधवार, 14 अक्टूबर 2015

दीवानी हूँ मैं उसके प्यार की..

ए साहिब!
पागल न कहना मुझे
के दीवानी हूँ मैं उसके प्यार की
वो माही है मेरा
और मंज़िल हूँ मैं उसके नाम की।

क्या कहना अदाओं के उसके
के कभी बड़ा हँसाता है वो मुझको
रो लेता है खुद में ही
पर बड़ा गुदगुदाता है वो मुझको।

उसकी सारी बातें
और वो शरारतें
बड़ा याद आती हैं
वो नटखट मुलाकातें।

वो मेरी जुदाई में
उसका शायरियाँ लिखना
और बस मेरे लिए ही
खुद में ही उसका अच्छा दिखना।

बड़ा तड़पाता है वो मुझे कभी कभी
पर बड़ा याद आता है वो मुझे हर कभी
जी रही हूँ आज बस उसके लिए मैं
गर वो न हो तो ख़त्म हो जाये ये ज़िन्दगी बस अभी।

ए साहिब!
पागल न समझ तू मुझको
के दीवानी हूँ मैं उसके प्यार की
एक तलब है मुझे
अब उसके इंतज़ार की।

देखना
वो जरूर आएगा
मिलने मुझसे
ए साहिब!
के वो माही है मेरा
और मैं मंज़िल हूँ
उसके नाम की।

पागल न बोल मुझको
के मैं तो दीवानी हूँ
हाँ
बस उसके नाम की।

#महेश_बारमाटे_माही
14/10/15
1:50 am