रौशनी तो कम हो गई थी
पर आँखों के चराग
अब भी जल रहे थे
हम बीती रात
दिल मे लिए कई ख्वाब
अनजानी राहों में चल रहे थे।
इक आहट हुई
और ख्वाबों का मेहताब टूट गया
कुछ टुकड़े चुभे दिल की ज़मीं पे
कोई अरमां आँखों से रिसता हुआ रुठ गया।
अँधेरों में सोने की आदत नहीं थी
उजालों ने डरना सिखा दिया
वक़्त-ए-सफ़र भी क्या खूब गुजरा माही!
के फैसले की घड़ी में उसने तुझे मेरा दीवाना बना दिया..
महेश बारमाटे "माही"
27 apr 18