तुम थे वहाँ
करते मेरा इंतज़ार
बैठ बिस्तर के कोने में
था मेरे आने का एतबार।
जाने कितनी देर
बैठे थे तुम वहाँ
मैंने की देर
गर्म मौसम में जैसे सर्द हवा।
हाँ! गलती थी मेरी
कि मैं न आया
किया इंतज़ार तुमने
और मैं पछताया।
पर क्या करता मैं
तुम जो हो खफा मुझसे
करनी नहीं है बात तुम्हे
और चाहते हो वफ़ा मुझसे।
तेरे होने का एहसास मुझे
तेरे और करीब ले आता है
तेरी मौजूदगी बताती है
कि ये एहसास तुझे
कितना तड़पाता है।
न तड़प
आ बाँहों में भर मुझे
एक पल को हो के मेरा
एक नगीना सा
दिल के ताज पे जड़ मुझे।
आ मेरा हो जा
मुझमे आज तू खो जा
ख्वाबों में सोया है अक्सर
आ खो के मुझमे तू सो जा।
कर ख़त्म इंतजार को अब
बरसा मुझपे अपने प्यार को अब
बिता दे सारी ज़िन्दगानी अपनी माही!
इस पल में पूरा कर अपने एतबार को अब।
महेश बारमाटे "माही"