"एहसास"
किसके लिए रोऊँ और क्यों आँसू बहाऊँ ?
आखिर कौन है यहाँ मेरा अपना, जिसकी खातिर आज हर गली रोता गाऊँ ?
मेरी किसी ख़ुशी में तो कोई, साथ न था कभी मेरे, गम तो बहुत दूर की बात है,
तन्हा ही आया था कभी मैं इस जहाँ में और आज भी वही तन्हा अँधेरी रात है... |
जो चाहा वो मिला मुझको और जिसे चाहा वो तो बस एक ख्वाब है...
फिर भी लोग कहते हैं - "ऐ महेश ! तू तो अरबों तारों के बीच एक आफ़ताब है "...
पर ये नासमझ लोग क्या जानें, के जो दीखता है वो तो बस एक ख्वाब है...
जिसे चाँद कहा है लोगों ने आज, उसके पीछे भी हमेशा एक काली अँधेरी रात है...
उसी रात की तन्हाई ने मुझसे, आज मेरा हर गम छीन लिया,
मेरी खुशियाँ, मेरा वजूद और मुझसे मेरा, प्यार भरा मौसम छीन लिया...
अब जब कोई भी नहीं है मेरे पास में,
तो अब आँसू बहाऊँ मैं किसकी आश में ?
जी रहा हूँ मैं तो अब बस इसी विश्वास में,
के यकीन करेगा ये जहाँ भी एक दिन... मेरे "एहसास" में...
The Unrealistic...
माही... (महेश बारमाटे)
3rd July 2010
बढ़िया!
जवाब देंहटाएंThanx...
जवाब देंहटाएं:)
acha ahsaas bhara
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