मेरे देश में
अब सब बदल रहा है
देखो न पर
ये बदलाव क्यों खल रहा है..?
जिसे देश ने अपनाया था
आज बिक रहा है
रसूखों की थाली में
सरकारी कबाब सिक रहा है।
"बोलना ही है"
एक किताब बन के रह गई
ईमानदारी अब बस
हिन्दू - मुसलमान बन के रह गई।
क्रांतिकारियों के मुँह पर
लग गए ताले हैं
लगता है इस भिंडी बाजार में
सब बिकने वाले हैं।
मैं किसी के खिलाफ नहीं
लगता है देश के पास जवाब नहीं।
जो चाहता हूं सुनना
यहाँ ऐसे ज़मीर वाले नहीं।
- महेश "माही"
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