मैंने कुछ कहानियाँ गढ़ीं
कुछ किस्से कहे
वो शामिल थे मुझमें
वो सुनते रहे।
वो दूर बैठे थे महफ़िल में
तमाशबीन बन कर
सीने से लगने को जी किया
अश्क़ बहते रहे।
महफ़िल में हर शख्स ने
तारीफ में उनकी वाहवाही लुटाई
इशारों - इशारों में नज़रें फिरा कर हम भी
बस उनके चेहरे को ही देखते रहे।
चारों तरफ खामोशियाँ सी फैल गईं
जब लबों पे नाम तेरा आया माही!
तुमने इज़हार-ए-ज़ुल्म-ए-मुहब्बत कर लिया
तुम जो महफ़िल को छोड़ गए।
- महेश "माही"
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 02 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा है ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद जी
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