वो पक्के रंग वाला लड़का
लोग उसे काला
तो कभी सांवला कहते थे।
गोरा होना उसके बस में न था कभी
बस अपने रंग में ढल जाना
खुद को बुरा न मानकर
बस खुद को अपनाना
ही था उसके बस में।
और फिर
उसने किसी गोरे को गोरा कहकर
नीचा नहीं दिखाया
पर उसका रंग
जाने क्यों गोरे लोगों को कमतर लगता ?
आज उसके पक्के रंग की तरह
उसका निश्चय भी पक्का है
कि गोरा रंग तो धूप में ढल जाएगा
क्योंकि वो कच्चा है।
और पक्का रंग
छूटता नहीं कभी
वो और पक्का होता जाता है।
समय और प्रकृति कभी
कोई भेद नहीं करती।
फिर ये भेद कहाँ से आया।
क्यों एक पुराने गाने में
राधा को गोरी, और कृष्ण को काला बताया
क्यों कृष्ण ने खुद को
खुद से ही कमतर जताया..?
हाँ! वो पक्के रंग वाला लड़का
कई कच्चे रंग वालों से
बेहद अच्छा है।
क्योंकि
खुद को कमतर न समझने वाला वो लड़का
आज सबसे सच्चा है।
- महेश "माही"
बहुत खूब। हम भी पक्के रंग के हैं :)
जवाब देंहटाएंजी बहुत बहुत धन्यवाद आपका..
हटाएंहम भी पक्के रंग के हैं..
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (06-07-2020) को 'नदी-नाले उफन आये' (चर्चा अंक 3754)
पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
अपने लेख में शामिल करने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद आपका 😊😊
हटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति....रंगों का अच्छे और बुरे में बाँटना सचमुच बुरा होता है....
जवाब देंहटाएंजी धन्यवाद आपका 😊😊
हटाएंबहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंजी धन्यवाद आपका 😊😊
हटाएंशानदार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंजी धन्यवाद आपका 😊😊
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअपने लेख में शामिल करने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद आपका 😊😊
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