तुम्हें वो याद करता है
हाँ! फरियाद करता है।
वो इश्क़ में तेरे
उस दिन का इंतज़ार करता है
जिस दिन दिल से वो कहे
कि वो सिर्फ तुमसे ही प्यार करता है।
तेरी हाँ और न का उसे कोई फर्क नहीं है अब
कि रूह के आशिक़ के पास कोई शर्त नहीं है अब।
कुरबतें उसकी जरूरत नहीं थी कभी
बस मुहब्बत में वो अब विश्वास करता है।
मुहब्बत में ही जीना है
मुहब्बत में ही मर जाना
ओ मेरे माही!
तू मिले तो बस तुझमें ही समा जाना।
यही इक़रार है उसका
यही इंतज़ार है उसका।
तुम्हें वो याद करता है
हाँ! फरियाद करता है।
एक दिल है सीने में
जो बस यही ख़्वाहिश हर बार करता है।
- महेश "माही"
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 21 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंवाह!!!!
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